पद्य साहित्य

धरती का शृंगार वृक्ष है

धरती का शृंगार वृक्ष है

धरती का शृंगार वृक्ष है
काट रहे है कैसा ये दृश्य है
नही बरसते मेघ गगन के
जल बिनु मरते जीव जन्तु जग/
देखि दशा मन पछताता है
कैसे निशचर काटे वृक्ष /
जीव जीव का हत्यारा बन
तान छेड़ता है सरगम /
महल अटारी नहि फुलवारी
सेंट से काम चलाते वे /
प्रकृति भूल प्रयोजन खोजें
आदर्श बनाए ढाक-पात /
फूल देख हर्षित जग होता
देव चढ़ाए कभी न राज /
राजकिशोर मिश्र ‘राज’

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

2 thoughts on “धरती का शृंगार वृक्ष है

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    धरती का शिंगार वाकई ब्रिक्ष हैं . बचपन में जब गाये भैंसें चराया करता था, मीलों तक बृक्ष ही ब्रिक्ष होते थे और हम इन घने जंगलों में खेलते रहते थे .बारश से बचने के लिए पलाश के पत्तों के बड़े बड़े टोप बनाया करते थे .अब खेतों के सिवा वहां कुछ नहीं है ,छोटी छोटी नदी नाले होते थे जो बरसात के दिनों में पानी से भर जाते थे और हम इन में तैरते रह्ते थे .अब यह नदी नालों का कोई नामों निशाँ ही नहीं है . स्थिति अत्ती गंभीर बनी हुई है .

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार संग नमन्

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