धरती का शृंगार वृक्ष है
धरती का शृंगार वृक्ष है
काट रहे है कैसा ये दृश्य है
नही बरसते मेघ गगन के
जल बिनु मरते जीव जन्तु जग/
देखि दशा मन पछताता है
कैसे निशचर काटे वृक्ष /
जीव जीव का हत्यारा बन
तान छेड़ता है सरगम /
महल अटारी नहि फुलवारी
सेंट से काम चलाते वे /
प्रकृति भूल प्रयोजन खोजें
आदर्श बनाए ढाक-पात /
फूल देख हर्षित जग होता
देव चढ़ाए कभी न राज /
राजकिशोर मिश्र ‘राज’
धरती का शिंगार वाकई ब्रिक्ष हैं . बचपन में जब गाये भैंसें चराया करता था, मीलों तक बृक्ष ही ब्रिक्ष होते थे और हम इन घने जंगलों में खेलते रहते थे .बारश से बचने के लिए पलाश के पत्तों के बड़े बड़े टोप बनाया करते थे .अब खेतों के सिवा वहां कुछ नहीं है ,छोटी छोटी नदी नाले होते थे जो बरसात के दिनों में पानी से भर जाते थे और हम इन में तैरते रह्ते थे .अब यह नदी नालों का कोई नामों निशाँ ही नहीं है . स्थिति अत्ती गंभीर बनी हुई है .
आदरणीय जी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार संग नमन्