कहानी : बेरोज़गार
” केशव !!..” पीछे से किसी महिला की आवाज सुन केशव ने पलट के देखा
“ओह!!!! नंदिता ….” केशव ने पीछे खड़ी नंदिता को देख आस्चर्य किया ।
“कँहा जा रही हो ?कब आईं?…. कैसी हो ” केशव ने एक सांस में कई प्रश्न कर दिए ।
“अरे बाबा …. इतने सारे क्योशन …वो भी एक साथ … कैसे उत्तर दूँ? वो भी यंहा बस स्टेण्ड पर ” नन्दिता ने बनावटी नारजगी दिखाते हुए कहा ।
” अरे हाँ …सॉरी … मैं भूल गया था की हम बस स्टैंड पर खड़े है ” केशव ने झेंपते हुए कहा ।
” कोई बात नहीं ….सारा अंकल को हैलो करो ” नंदिता ने अपने साथ खड़ी अपनी बेटी से केशव की तरफ इशारा करते हूए कहा ।
केशव की नज़र अब 3 साल की प्यारी सी बेटी पर पड़ी जो नंदिता के पास खड़ी थी , बिलकुल नंदिता की टू कॉपी लग रही थी ।वही चेहरा , वही नैन नक्श ।
केशव ने प्यार से उसकी तरफ देख के हेलो कहा ।
“इतने दिनों बाद मिले हैं … चलो कंही थोड़ी देर बैठते हैं और बाते करते हैं…… रॉयल रेस्त्रा में चलते हैं ” नंदिता ने एक पल सोचा और कहा ।एक रिक्शे को हाथ दे दिया रुकने को ।
“ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी ….तुम बिलकुल नहीं बदलीं ” केशव ने नंदिता की बात का हंसकर जबाब देते हुए कहा ।
नंदिता तक़रीबन दस बारह साल की होगी जब उसके पिता जी केशव के पड़ोस में घर लिया था , केशव भी थोडा सा ही बड़ा होगा नंदिता से ।धीरे धीरे केशव और नंदिता में काफी दोस्ती हो गई थी , दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लगता था ।जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही दोनों की दोस्ती प्यार में कब बदल गई थी यह पता ही नहीं चला था ।
केशव ग्रेजुएसन् कर चुका था पर नौकरी नहीं लगी थी , बेरोजगार ।कभी ssc, upsc के एग्जाम देता तो कभी अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की ।चुकी केशव ने कोई प्रोफेसनल कोर्स नहीं किया था बल्कि कला में ही स्नातक किया था इसलिए प्राइवेट जॉब लगती तो पर सैलरी बहुत कम होती ।अतः उसने सरकारी नौकरी करने का ही निश्चय किया था इसलिए कभी नौकरी के फॉर्म भरता तो कभी प्रतियोगी परीक्षाओं के ।
इधर नंदिता ने भी स्नातक कर लिया था , अब उसके माँ बाप उसकी शादी करना चाह रहे थे ।
नंदिता जानती थी की केशव बेरोजगार है पर फिर भी उससे शादी करना चाहती थी केशव स्वयं भी तो यही चाहता था ।पर क्या करे वह खुद माँ बाप के सहारे था अभी तक ।उसका सारा खर्चा अभी वही लोग उठा रहे थे तो ऐसे में शादी की बात कैसे कर सकता था ।अतः बात घरवालो तक पहुंची ही नहीं उनकी प्रेम कहानी का वंही अंत हो गया ।
और एक दिन ऐसा आया की नंदिता की शादी तय कंही और कर दी गई लड़का किसी mnc कंपनी में ऊँची पोस्ट पर था ,केशव चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया ।नंदिता शादी कर के दूसरे शहर चली गई ।
आज इस बात को चार साल से अधिक हो गए थे वह तो लगभग उसे भूल ही चुका था ।
अचानक आज फिर नंदिता उससे मिल गई ।
केशव के हालात आज भी जस के तस हैं , वही बेरोजगारी का आलम।नौकरियों के फार्म भरना ,इंटरवियु देने के लिए दफ्तरों के धक्के खाना ।
आज वह एक कंपनी में इंटरव्यू देने ही जा रहा था , बस स्टेण्ड पर बस का इन्तेजार कर रहा था की नंदिता मिल गई ।पापा ने दस दिन पहले ही 500 रूपये दिए थे खर्चे के लिए जिसमे से 200 रूपये फार्म भरने और इंटरव्यू देने जाने के किराये में खर्च हो चुके थे ,300 रूपये ही बचे थे जिसमे की अभी पूरा महीना बिताना था ।
रॉयल रेस्त्रा बहुत महंगा था , नंदिता की शादी से पहले वे दोनों एक बार जा चुके है ।कॉफी ही 70-80 रूपये की मिलती है वंहा वेटर को टिप न दो तो वह अलग मुंह बनाता है ।केशव परेशान सा हो रहा था , पर नंदिता इतने दिनों बाद मिली है तो उससे कैसे मना कर सकता था ? ।
रिक्शे पर बैठी नंदिता केशव से बाते किये जा रही थी पर केशव केवल मुस्कुरा देता या हाँ न में जबाब देता ,उसके मन में तो आने वाले खर्चे को लेके उधेड़ बुन चल रही थी ।
रिक्शा रॉयल रेस्त्रा के सामने पहुंचा ।
“कितना किराया हुआ ?” केशव ने रिक्शेवाले से पूछा
” 30 रूपये…” रिक्शेवाले ने कहा
केशव का जी चाहा की रिक्शेवाले से लड़े की इतने पैसे थोड़े न लगते हैं इतनी सी दूरी के पर वह नंदिता के सामने ऐसा नहीं कर सकता था ।
उसने अपना हाथ जेब की तरफ बढ़ाया था की नंदिता बोली “रुको केशव ! मैं दे देती हूँ ”
” अरे नहीं यार … तुम क्यों दोगी ? … मैं दुंगा” केशव ने कहा और बटुआ खोल के 30 दे दिए।
रेस्त्रा में पहुँचने के बाद जब टेबल पर बैठे तो वेटर ने मैन्यू कार्ड लाके दिए, केशव ने मैन्यू में आइटम्स की रेट लिस्ट देखी तो होश उड गए कोई भी आइटम 70 रूपये से कम न था…वह मन ही मन बेचैन हो उठा की पता नहीं कितने का बिल आएगा , कंही ऐसा न हो की ज्यादा पैसे का बिल आ जाये तो क्या होगा ? क्या उसे बिल की पेमेंट करनी चाहिए या नंदिता को ही करने देना चाहिए …. नही यह तो बेज्जती वाली बात हो जायेगी बिल तो उसे ही देना चाहिए, फिर बाकि के दिन का क्या होगा ? ।केशव का सोच सोच के बुरा हाल था और चेहरे पर नंदिता के इतने दिनों बाद मिलने की ख़ुशी से ज्यादा पैसे की चिंता की लकीरे दिख रही थी ।
नंदिता ने बिना केशव की तरफ देखे दो कॉफ़ी और साथ में स्नेक्स का आर्डर दिया … फिर जाते हुए वेटर को बुला अपनी बच्ची के लिए आइसक्रीम भी मंगा ली ।
तगड़ा ही बिल आने वाला था ,अब केशव का दिल और बैठ गया , बेरोजगारी और ऊपर से जो खर्चे के पैसे मिले है वह भी आज ख़त्म समझो ।
वेटर के जाने के बाद नंदिता ने केशव से पूछा –
“तो आज कल क्या हो रहा है ?” शादी वादी की कि नहीं ?” नंदिता ने छेड़ने वाले अंदाज में पूछा
” कँहा शादी ? अभी तो नौकरी भी नहीं लगी कंही … धक्के खा रहा हूँ नौकरी के लिए … आज भी एक जगह इंटरव्यू था … वंही जा रहा था ” केशव ने ठंढी आह भरते हुए कहा
“कुछ हालात नहीं बदले नंदिता…… सब वैसे ही है … वही माँ बाप के ताने … वैसे ही बेकरी के दिन ” केशव की आवाज और दर्द लिए बाहर आई ।
” ओहो! … कोई बात नहीं केशव … सब ठीक हो जायेगा … तुम्हारी नौकरी भी लग जायेगी ” नंदिता ने उसे हिम्मत बढ़ाते हुए कहा
उसके बाद दोनों बहुत देर तक इधर उधर की बाते करते रहे कॉफी स्नेक्स ख़त्म किया ,इधर बच्ची आइसक्रीम अभी खा ही रही थी ।जब केशव को सुनिश्चित हो गया की अब नंदिता कोई और ऑर्डर नहीं देगी तो वह उठा और रिसेप्शन की तरफ बढ़ गया ।उसके हाथ में जो फाइल थी जिसमे उसका रिज्यूमे और बाकी के डॉक्युमेंट्स थे वह नंदिता के सामने ही टेबल पर रह गई ।
केशव नंदिता से पहले बिल चुका देना चाहता था इसलिए वह रिसेप्सन पर गया , नंदिता समझ पाती इससे पहले रिसेप्शनिस्ट ने उसके हाथ में बिल दे दिया था ।
टोटल बिल था 220 रूपये का ।केशव ने धड़कते दिल से पर्स खोला और 250 रूपये पकड़ा दिए ,पास में ही वेटर खड़ा था जिसने सर्व किया था वह केशव की तरफ मुस्कुरा के देखने लगा ।केशव समझ गया की टिप मांग रहा है उसने दस रूपये अनमने ढंग से वेटर को पकड़ा दिए ।वेटर ने दस रूपये देख के मुंह बनाया और जेब में रख वंहा से चला गया ।
इतने में नंदिता भी केशव के पास आ गई ,उसने नाराज होते हुए कहा की बिल देने की क्या जरुरत थी वह दे देती पर केशव उत्तर देने की वजाय मुस्कुरा दिया ।
नंदिता ने केशव को उसकी फ़ाइल पकड़ाई जो वह टेबल पर छोड़ आया था ।
दोनों ने फिर रिक्शा पकड़ा और वापस बस स्टेण्ड पर आ गए इस बार भी किराया केशव ने ही दिया।कुछ ही देर में नदिता को ऑटो मिल गया और वह केशव से विदा ले अपने घर चल दी ।
केशव ने हाथ हिला और मुस्कुरा के दोनों माँ बेटी को विदा किया …. बदले में नंदिता और उसकी बेटी ने भी मुस्कुरा हाथ हिलाया ।
जब नंदिता आँखों से ओझल हो गई तो केशव उदास होके बस स्टैंड पर ही बैठ गया , उसने अपनी जेब टटोली तो केवल दस रूपये ही बचे थे उसके पास ।
भारी मन से वह पैदल ही आपने घर चल दिया , रास्ते भर सोचता रहा की अब दुबारा कैसे मांगेगा पैसे अपने पापा से बड़े अहसान कर के और ताने मार के तो 500 रूपये देते है महीने के खर्चे के लिए ।
घर पहुँच के वह सीधा अपने कमरे में गया और फ़ाइल् बिस्तर पर फैंक के धम्म से बिस्तर पर गिर गया । फ़ाइल को फैकने से उसके कागज़ इधर उधर बिखर गए थे ।वह उठ के कागजो को समेटने लगा की उसकी नजर एक लिफाफे पर पड़ी।
ये लिफाफा किसका है ?उसका तो नहीं है … उसके कागजो में कैसे आया ?कई सरे प्रश्न लिए उसने लिफाफा उठाया और उसे खोल दिया ।
लिफाफे में एक हजार का 1000 का नोट था और एक कागज़ जिस में लिखा था –
केशव मुझे तुम्हारी हालत पता है , प्लीज अगर तुम मुझे अपना दोस्त समझते हो तो ये पैसे ले लेना , और तुम इस एड्रेस पर इस व्यक्ति से मिल लेना तुम्हारी नौकरी लग जायेगी
mr.mahesh
B 45 , first floor , NC tower , dariyagganj
— केशव (संजय)
कहानी बहुत ही अछि लगी , a friend in need is a friend indeed.
बहुत अच्छी कहानी !
सुंदर लेखन