चंद मुक्तक
अब भी विस्थापित कश्मीरी पंडित कैसी लाचारी है
मोदीजी राजनाथ देखे क्या कैराना की बारी है
क्यों शासन चुप है यू पी का या वोट बैंक है खतरे में
दहशत में हिन्दू घर छोड़े ऐसी भी क्या दुश्वारी है
न अब गुनगुनाने का मन हो रहा है
न नज़रे चुराने का मन हो रहा है
दशा देख कर हिन्दुओ की वतन में
कहीं डूब जाने का मन हो रहा है
आंसू छिपा नयन में अपने अधरों पे मुस्कान रखो
मन में हिम्मत बंद मुठ्ठियों में अपनी तूफ़ान रखो
सारी दुनिया स्वतः तुम्हारे कदमो मे झुक जाएगी
पहले खुल कर अपने दिल में अपना हिंदुस्तान रखो
ऐ दोस्त गज़ब मुंबई भी ये मौसम की तरह बदलता है
अपने बन जाते बेगाने बेगाना अपना बनता है
दस्तूर समंदर से सीखा शायद इस शहर के लोगों ने
जो मगन है अपनी मस्ती में दिन रात स्वयं को छलता है
छोड़ पलायन वाला पथ हुंकार भरो अब
आतंकी धमकी से बिलकुल तुम न डरो अब
देश तुम्हारे साथ शपथ भारत माता की
सारे राष्ट्र द्रोहियो को निर्मूल करो अब
— मनोज श्रीवास्तव