लघु कथा : खोखली सोच
आज फिर से आवाज आई- “सुधा जल्दी तयार होकर समय से आ जाना नीचे”! थक चुकी थी वह सज धज कर बार बार! यह इक्यावन्वी बार था, जब सुधा फिर एक लड़के से मिलने जा रही थी, अपना जीवन साथी चुनने हेतु! न जाने कितनी ही बार मिली कितने अनजान चेहरों से, पर हर शक्स अजीब सा निकला! माँ बाप भी परेशान से रहने लगे अब यही सोचकर कि पता नहीं उनकी सपुत्री के भाग्य में ग्रहस्थ जीवन का योग लिखा भी है या नहीं, पता नहीं उनके जीवन में कन्यादान करने का सौभाग्य है या नहीं! नजाने क्यूँ समाज इतना शिक्षित होकर भी एक खोखली सोच में बंधा हुआ है ; दहेज प्रथा!
इस बार भी वही हुआ, जैसे ही सुधा नीचे आई, लडके वालों ने उसके माता पिता से सिर्फ एक ही प्रश्न पूछा; कितना व्यय खर्च करेंगे विवाह पर आप? और दहेज़ में क्या देंगे अपनी बेटी को? सुधा के माता पिता निरुत्तर से हो गये इस बार! परन्तु, सुधा चुप न रही अब, और कह डाला कि नहीं करना उसे विवाह एक ऐसे परिवार में, जहाँ दहेज़ जैसी खोखली सोच अभी भी वास करती है, नहीं बनना ऐसे पुरुष की जीवन संगिनी, जो एक शिक्षित समाज में रहकर भी एक अनपढ़ की भांति अपने माता पिता के विचारों को प्रोत्साहन दे रहा हो! इतना कहते ही सुधा ने उनको सादर निवेदन किया कि वे यहाँ से जा सकते हैं, और कोई व्यापारी परिवार से नाता जोड़ सकते हैं! सुधा के पिता और माता फिर से निराश हो उठे और, नैनों से आंसूं छलक पड़े! परन्तु सुधा ने उनको आश्वासन दिया कि ईश्वर ने संसार में सबके लिए किसी न किसी को बनाया है, आपकी पुत्री के लिए भी होगा, आप निश्चिन्त रहिये, सब ईश्वर पर छोड़ दीजिये! परन्तु हमें स्वयं ही इस दहेज नाम की कुरीति को मिटाना होगा!
आम साधारण से परिवार के लिए कन्या का विवाह शायद एक आसान कार्य नहीं रहा अब! क्या कमी थी सुधा में? रंग रूप, गुणवान, उच्च कोटि की शिक्षा का गौरव, पारिवारिक संस्कार, सब कुछ तो भरा था कूट कूट कर उसमें! कमी थी तो शायद यही कि दहेज जैसा धन का भंडार नहीं था उसके माता पिता के पास!
यदि कहीं वर सही नजर आता, तो एक यही प्रश्न “दहेज” आगे आकर खड़ा हो जाता, जिसके समक्ष सभी अरमान अधूरे रह जाते सुधा और उसके परिवार के! अब तो उसका मन भी इतना फिट चूका था इस विवाह नाम के बंधन से , परन्तु समाज की खातिर उसको हर बार अपना मन मारकर फिर से एक नये पड़ाव के लिए तयार रहना पड़ता! नजाने कब समाप्त होगा इस समाज से इस खोखली सोच का यह दौर! क्या फायदा है इतना शिक्षित होने का जब आज भी पुरानी सोच रखने वाले लोग इस उच्च समाज का हिस्सा हैं!
— डॉ सोनिया
विकासशील देश की सबसे क्रूर सच्चाईयों में से एक बहुत बड़ी और घिनौनी सच्चाई