कविता

कविता : दहेज़

लड़को के अब यहां होत चौगने भाव।
जैसे टमाटर बिक रहे ठीक बीस के पाव।
बोली लगती लड़को की टेंडर होते रोज ।
कौन लगाए ज्यादा बोली बो फिर लेते खोज।
जमीन मोड़ा पे 10 बीघा लिया बगीचा मोल।
घर हमारे टेक्टर रायफल अटिया है बे मोल।
गांव में मेरा डंका बाजे मेरा ही है रोल ।
घर को देखो बेटा देखो दे दो पूरा मोल ।
लड़की होती एमबीए लड़का इंटर फ़ैल।
मन माफिक घर न मिले पकड़ा देते गेल।
फिर भी बिटिया बाले सब कष्ट को लेते झेल।
सगुन चाहिए चार उन्हें पहले देते बोल।
कार चाहिए फलदान में लगुन् हांर बेमोल ।
लक्जरी आइटम टीका में बेला हो अनमोल ।
रिश्ता मेरा पक्का समझो यदि हामी दो बोल।

दीपक गांधी “तीतरा खलीलपुरी”

दीपक गाँधी

नाम - दीपक गांधी पिता का नाम - टी आर गांधी पद - विकास खण्ड अकादमिक समन्वयक (उच्च श्रेणी शिक्षक) निवास - ग्वालियर म. प्र. रूचि - साहित्य , लेखन ( कविता, गजल) साहित्यिक सफर - 120 कविता, 80 गजल लिख चुका हूँ

2 thoughts on “कविता : दहेज़

  • नीतू सिंह

    सौ टका खरी कविता।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    दहेज़ की लानत कब जायेगी भारत से ? कविता आँखें खोल देने वाली है , बहुत अछि लगी .

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