बरसात के दोहे
बारह मे से चार को, हमने दिया घटाय
शेष शून्य है दो गुना, जीवित रहा न जाय
बिना नीर जीवन कहाँ, बिन वर्षा क्या प्यार ?
बिनु कवि के कविता कहाँ यही जगत का सार
मिरगिसिरा धरती तपे- जन मन देता त्राण
बरखा रानी देख के गर्मी किया प्रयाण
कृषक खुशी से झूमता , देखत जल की धार
स्वाति नक्षत्र बून्द में मोती का संसार
जीव जन्तु आकुल हुए, निरखि रहे बरसात
बरखा रानी आइए , स्वागत है दिन रात
नीर-नीर मछली रटे , धरती करे दरार
विरहण बरसा मे गयी , मघा मातु का प्यार
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’