गीत : हो गया मौसम सुहाना
आज नभ पर बादलों का है ठिकाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
कल तलक लू चल रही थी,
धूप से भू जल रही थी,
आज हैं रिमझिम फुहारें,
लौट आयी हैं बहारें,
बुन लिया है पंछियों ने आशियाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
हल किसानों ने उठाया,
खेत में उसको चलाया,
धान की रोपाई होगी,
अन्न की भरपाई होगी,
गा उठेगा देश फिर, सुख का तराना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
ताल के नम हैं किनारे,
मिट गयीं सूखी दरारें,
अब कुमुद खिलने लगेंगे,
भाग्य धरती के जगेंगे,
आ गया है दादुरों को गीत गाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
प्रिय रूपचंद भाई जी,
मौसम हुआ सुहाना,
यह हमने आपकी रचना से जाना.
अति सुंदर गीत के लिए आभार.
सुंदर