कविता

सावन

छाई है घनघोर घटा फिर,
रिमझिम है बरसा सावन।

दादुर मोर पपीहा बोले,
अरु भीगा मेरा तन मन ।

जब बरसे सावन ओ साजन,
बीते पल तडपाते हैं।

नैन नीर होता है मेरे,
आंसू झरते जाते हैं ।

ऐसी भी क्या मजबूरी है,
मुझको भूले बैठे हो ?

खता हुई है ऐसी भी क्या,
जो तुम मुझसे ऐंठे हो ।

छमछम करती पायल मेरी,
खनखन करते हैं कंगन ।

बांध लिया है प्रियवर तुमसे,
प्यार भरा मैंने बंधन ।

सावन बरसे नैना तरसे,
पिया मिलन की आस लिये ।

आज लौटकर आओ प्रियतम,
निज मन मे एहसास लिये ।

बादल गाते प्रेम गीत जब,
धरती से नभ मिलता है।

विरह सहन करता अंतस
मानो वेवस हो जलता है।

अनुपमा दीक्षित मयंक

अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - adixit973@gmail.com