गीतिका/ग़ज़ल

चेहरे पर चेहरा लगाकर जी रहा है आदमी

चेहरे पर चेहरा लगाकर जी रहा है आदमी।
खुद से भी खुद को छुपाकर जी रहा है आदमी॥

कहने को तो हम सभी बेबाक कहते है मगर।
सच ये है सच को छुपाकर जी रहा है आदमी॥

देखने को हर किसी के होठों पर मुस्कान है।
दर्द सीने में दबा कर जी रहा है आदमी॥

ख़्वाहिशों के बोझ में दब सी गयी है जिन्दगी।
फिर भी ये बोझा उठाकर जी रहा है आदमी॥

जिस तरफ भी देखिये बेचैनिया है दर्द है।
जिन्दगानी को भुलाकर जी रहा है आदमी॥

आदमी को आदमी पर अब भरोसा ही नही।
बस्तियों में जानवर बन जी रहा है आदमी॥

मर चुकी इंसानियत है धर्म भी बाकी कहाँ।
मर रहा हर रोज फिर भी जी रहा है आदमी॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “चेहरे पर चेहरा लगाकर जी रहा है आदमी

  • लीला तिवानी

    प्रिय सतीश भाई जी, अति सुंदर व सार्थक ग़ज़ल के लिए आभार.

  • लीला तिवानी

    प्रिय सतीश भाई जी, अति सुंदर व सार्थक ग़ज़ल के लिए आभार.

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