ग़ज़ल
रंग रूखसार का तेरे उड़ा-उड़ा क्यों है
मेरे महबूब तू इतना डरा-डरा क्यों है
ऐसा लगता है कि छूते ही छलक जाएगा
दिल का पैमाना लबालब भरा-भरा क्यों है
अगर खोली ही नहीं तूने कभी दिल की किताब
कोई-कोई वर्क फिर इसका मुड़ा-मुड़ा क्यों है
नहीं है वास्ता तुझसे मेरा अगर कोई
हर एक ख्याल फिर तुझसे जुड़ा-जुड़ा क्यों है
खत लिखते हुए बहे नहीं थे आँसू अगर
लफ्ज़ कोई बीच-बीच में मिटा-मिटा क्यों है
तुझे चाहा मगर तुझसे तो कभी कुछ नहीं चाहा
मेरे हमदम तू फिर मुझसे खफा-खफा क्यों है
— भरत मल्होत्रा
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल