ग़ज़ल : कोई हमें उनसा नहीँ मिलता
ढूँढ़ते हैं मगर कोई हमें उनसा नहीँ मिलता
गुल रोज़ खिलते है कमल दिल का नहीँ खिलता।
गुल रोज़ खिलते है कमल दिल का नहीँ खिलता।
बड़ी आसानी से किसी का कह गए हमको
उन्हे मालूम क्या उनबिन कही भी दिल नहीँ लगता।
प्यास एक बूँद की है तो समन्दर क्या करूँ
प्यास अस्कों से बुझती है अश्क खारा नहीँ लगता।
हजारो जिन्दगी तुम पर निछावर हैं मेंरी
तुमसे बढकर जहाँ में अब कोई प्यारा नहीँ लगता ।
फासले थे फासले हैं रहेंगे उम्र भर शायद
मगर कहता है कहाँ कौन कि तू हमारा नहीँ लगता ।
देखते हैँ तुम्हें हँसते दिल बाग है जानिब
बस तुमको देखे बिना जीना ही गवांरा नहीँ लगता ।
“जानिब”
बहुत शानदार ग़ज़ल !