गीतिका/ग़ज़ल

व्यंग्य ग़ज़ल- कितना ख़याल करते हैं

लोग कितने सवाल करते हैं.
ज़िंदगी तक मुहाल करते हैं.
जब ज़रूरत हो तब नहीं आते,
बाद में देखभाल करते हैं.
यों तो साहब को कुछ नहीं आता,
बाबू कहते-कमाल करते हैं.
नाम चर्चा में रहता है उनका,
काम उनके दलाल करते हैं.
चाहे करते हों कुछ भी ले-दे कर,
काम वो बहरहाल करते हैं.
पालते-पोसते हैं कुछ दिन तक,
फिर वो बकरा हलाल करते हैं.
आख़िरी वक़्त लाये गंगाजल,
माँ का कितना ख़याल करते हैं.

— डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674

One thought on “व्यंग्य ग़ज़ल- कितना ख़याल करते हैं

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया व्यंग्य ग़ज़ल !

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