बाल कविता : इन्द्रधनुष के रंग निराले
इन्द्रधनुष के रंग निराले
उमड़े बादल काले-काले
पल में तोला, पल में माशा
नभ में होता आज तमाशा
कुदरत के हैं अजब नजारे
सात रंग लगते हैं प्यारे
गर्मी का हो गया सफाया
धनुष सभी के मन को भाया
बादल कितना हुआ मगन है
हर्षित होता नीलगगन है
इन्द्र देव कर रहे सिफारिश
रिमझिम-रिमझिम होती बारिश
चपला जी भरके चमकेगी
धरती की भी प्यास बुझेगी
सड़क बन गयी ताल-तलैया
नाच रहे सब ता-ता-थैया
नहीं रहेगा चातक प्यासा
शुरू हो गया अब चौमासा
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’