कविता की सच्चाई
कई बड़े कवियों को,मंच पर ,
एक ही गम खा जाता है,
कि ‘कविता’ का रंग कैसे,
हर महफ़िल में जम जाता है,
वो नादाँ क्या समझे ,
कविता की सच्चाई किसे कहते है,
शायद चार शब्दों की तुकबंदी को
यह शायरी समझ लेते हैं,
या कभी कुछ घिसे पुराने लतीफों को
तुकबंदी में ढूंसते हैं,
हास्य कवि कि श्रेणी में,
बस लतीफी वाह वाही लूटते हैं
कविता के दिल के भाव तो,
साहित्य कि भावनाओं में बहते हैं
शब्द भी इन भावों से पिघल कर,
लेखनी के वश में रहते है,
महफ़िल में अगर चमकना है,
साहित्य की ‘किरण’ बन कर
तो पहले माँ सरस्वती का गुणगान करें —
लेखनी तो सरस्वती है,
इसका न अपमान करें,
सत्य लिखें सौम्य लिखे,
अश्लीलता से दूर रहें,
सच चाहे कड़वा भी हो,
लेखक को स्वीकार हो
झूठ चाहे मधुर हो,
विष की तरह धिक्कार हो,
जो लिखा है आज,
वो सदियों न मिट पायेगा,
जैसा लेखन पढ़ेगा ,
समाज वैसा ही बन जायेगा,
कलम की ताक़त जहाँ में ,
तलवार से भी तेज़ है,
माया की खातिर झूठ लिखते ,
बस इसी का खेद है,
सच्चे मन से जो करता है ‘कविता’ सृजन
वही साहित्य में चमकता है, बन कर ‘किरण ‘
——जय प्रकाश भाटिया