ग़ज़ल
दुआ देने में यारों को बड़ी तकलीफ होती है,
खुशी से गम के मारों को बड़ी तकलीफ होती है
मिटा देता है वक्ती तौर पर हस्ती ही उन सबकी,
सूरज से सितारों को बड़ी तकलीफ होती है
फिसल जाता है पानी बारिशों का संगेमरमर से,
मगर कच्ची मीनारों को बड़ी तकलीफ होती है
गुज़र जाते हैं सारे कारवां मिट्टी उड़ाकर जब,
तनहा रहगुज़ारों को बड़ी तकलीफ होती है
हाकिम बाँटते हैं कुर्सियां जब चापलूसों को,
तो हम जैसे खुद्दारों को बड़ी तकलीफ होती है
कंधों पर लिए लाशें इतने मासूम फूलों की,
लौटने में बहारों को बड़ी तकलीफ होती है
— भरत मल्होत्रा
मार्मिक रचना