ग़ज़ल
गीत गाता फिरे चाँद कहने लगा
आज खुद गेसुओं मे थिरकने लगा
शाम ढलने लगी– चाँदनी के लिए
ईद का चाँद खुद – जब मचलने लगा
रात बीते सुबह- ईद होगी यहाँ
मिल गले नभ ज़मीं, मीत कहने लगा
चाँदनी चाँद से इश्क फरमा रही
देख कर चाँद का दिल धड़कने लगा
रात बोझिल हुई थक गये जब नयन
प्रीति बादल ज़मीं पे तड़पने लगा
ईद का चाँद रोशन किया जब ज़मीं
प्यार पैगाम दे खुद सँवरने लगा
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
प्रिय राजकिशोर भाई जी, शब्द -शब्द की मणिका ने प्यार का प्यारा पैगाम दिया. अति सुंदर ग़ज़ल के लिए आभार.
बहन जी प्रणाम आपकी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के के लिए आभार