गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल…….

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कभी आँसुओं से नहा गयी, कभी मैं ख़ुशी से सँवर गयी||
तेरा प्यार फिर भी न पा सकी, मेरी उम्र यूँ ही गुज़र गयी||

न ही तुझसे तुझको चुरा सकी, न ही दिल की दुनिया बसा सकी|
थीं बहुत गुनाह की ख़्वाहिशें, हुआ ये कि ख़ुद से ही डर गयी||

मेरा मुझपे कोई न हक़ रहा, तेरा इश्क़ मुझको ही डस रहा|
कभी दिल में तेरे समा गयी, कभी दिल से तेरे उतर गयी ||

ये उदासियाँ मुझे तुमने दीं, मेरे आँसुओं का सबब भी तुम|
ये भी एक सच मेरे हमसफ़र, मैं तेरी ही आँखों में भर गयी||

ये मुहब्बतों का ख़ुमार था जो हमारे दिल पे सवार था|
तू भी रेज़ा-रेज़ा पिघल गया,मैं भी हौले-हौले बिखर गयी||

तेरी तल्ख़ियां भी क़ुबूल थीं, मेरे चारागर, मे रे हमनवा!
थी बहुत ही कड़वी दवा तेरी, ये ग़ज़ब का कर भी असर गयी||

मिले बाद जब कई साल के ,बड़ी शिद्दतों से कहा गया|
उन्हें बांकपन में दिखी थी मैं, कि नज़र में तब से ठहर गयी||

मुझे मेरे अपनों ने डस लिया, मेरे ऐतबार का खूँ किया|
मेरी शुहरतों का ये हाल था मैं जिधर गयी वो उधर गयी||

वो जो दूर थे बड़ी चाह थी, जो मिले तो ख़त्म है आरज़ू|
वो नदी थी तेज़ उफान की, बड़े हौले-हौले उतर गयी ||

तू हर एक दिल की पुकार थी, तुझे चाहते थे यहाँ सभी|
तू वही है क्या मुझे ये बता , तेरी कमसिनी वो किधर गयी||

….. डॉ. पूनम माटिया 

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]