ग़ज़ल
ज़ख्म पुराने भरने में कुछ वक्त तो लगता है,
दोबारा भरोसा करने में कुछ वक्त तो लगता है
इक चिंगारी काफी है सूखे हुए तिनकों को,
गीली लकड़ी जलने में कुछ वक्त तो लगता है
बन जाती है झोंपड़ियां तो रातों-रात मगर,
राजमहल को बनने में कुछ वक्त तो लगता है
सब्र करो कि धूप भी निकलेगी सुखों वाली,
गम के बादल छटने में कुछ वक्त तो लगता है
ये सोच के हमने भी अबतक हिम्मत नहीं हारी है,
पत्थर दिल को पिघलने में कुछ वक्त तो लगता है
— भरत मल्होत्रा
बेहतरीन ग़ज़ल
बेहतरीन ग़ज़ल