मुक्तक/दोहा मुक्तक मानस मिश्रा 20/07/201622/07/2016 गर कुरान की आयत पढ़ते ऐसा कर्म नहीं होता. मज़लूमों का खून पिये जो ऐसा धर्म नहीं होता. कर्मकांड के नाम पे अब तो आडंबर को बंद करो. धर्म कोई हो किसी धर्म का ऐसा मर्म नहीं होता. — मानस मिश्रा