ठोकर खाकर गिरना और ….
ठोकर खाकर गिरना, और सम्हलना आ गया।
हमको जीवन की राहों में, चलना आ गया॥
देख लिया हमने लोगों का, चेहरे पर चेहरा मढना।
सीख लिया हमने नकाब के, पीछे के चेहरे पढना॥
इतने छले गये हमको भी, छलना आ गया….
हमको जीवन की राहों में, चलना आ गया…
गैरों ने भी लूटा हमको, अपनों ने भी लूटा जी भर।
ऐसा लगता है ये दुनियाँ, झूठे नातों का है सागर॥
झूठ के हर सागर से हमें निकलना आ गया…..
हमको जीवन की राहों में, चलना आ गया…..
गद्दारों धोखेबाजों को गले लगाकर देख लिया।
हमने जहरीले साँपों को, दूध पिलाकर देख लिया॥
जहरीले साँपो को हमे कुचलना आ गया……
हमको जीवन की राहों में, चलना आ गया…..
बुरे दौर में गैर तो क्या, अपने भी नजर चुराते है।
दौर अगर गरदिश का हो तो, प्यादे आँख दिखाते है॥
इतने उजडे कि पतझर मे, पलना आ गया…..
हमको जीवन की राहों में, चलना आ गया….
सतीश बंसल