मुक्तक/दोहा

मुक्तक

वो जो बरसात की बूंदो मे नहाने निकले
यूं लगा हुस्न से बूंदो को जलाने निकले
मलमली कुर्ती मे गोरा बदन मेरी तौबा
जिसने देखा कहा क्यूं आग लगाने निकले॥

तन को छूकरके बूदें नाज़ से इतराती है
उसकी साँसों से फिजाये भी महक जाती है
जब झटकती है जुल्फे खोलके हाये तौबा
दिल की धडकन भी शराबी सी बहक जाती है

देख कर यूं लगा खिलता गुलाब है कोई
या जवानी का जलता आफ़ताब है कोई
मलिका हुस्न उतर आई स्वर्ग से या तो
या कि चाहत का ये हसीन ख्वाब है कोई॥

कुछ तो सावन की फुहारों का नशा छाया है
हुस्न के जलवो ने उस पर ये सितम ढाया है
रोक दो रोक दो इतना भी सितम ठीक नही
दिल बहुत मुश्किलों से अपना सम्हल पाया है॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.