गीतिका/ग़ज़ल

हर तरफ नफ़रत की फसलें….

हर तरफ नफरत की फसलें बो रहा है आदमी।
क्यूं न जाने आदमीयत खो रहा है आदमी॥

हँस रहा है बस दिखावे के लिये झूठी हँसी।
सच यही है आज केवल रो रहा है आदमी॥

धर्म जीवन के लिये था यह कभी वरदान था।
आज केवल धर्म को बस ढो रहा है आदमी॥

खून के छीटे लिये दामन कई उजले यहाँ।
लाश पर इंसानियत की सो रहा है आदमी॥

शांत सागर है लहर कोई न तो तूफ़ान है।
कश्तियां अपनी मगर डुबो रहा है आदमी॥

देखिये अब और क्या आगे पडेगा देखना।
दाग दामन के लहू से धो रहा है आदमी॥

जुल्म की हद हो चली मौला करम कुछ कीजिये।
नाम पर तेरे ही शैतां हो रहा है आदमी॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.