कविता

“आज मैं लाचार हूँ”

चित्र अभिव्यक्ति आयोजन

 

 

आज मैं लाचार हूँ, उम्र की दहलीज पर

बन सखी मेरी खड़ी, वैसाखी शरीर पर

भार मेरा ढ़ो रही, शय समय की चाकरी

माँ बनी बेटी पुतर, जीव है उम्मीद पर॥

 

देखता हूँ जब इसे, तो आँखें भर जाती

उम्मीद का सामना, दामन पकड़ा जाती

कुढ़ती है खत मेरी, हर पल शीसकती है

चाहता पढ़ ले मुझे, पर वही पढ़ा जाती॥

 

छोडकर सारे गए, सह सखा बारात के

क्या बताऊँ मैं इसे, बेवजह आघात के

दूर होता जा रहा, आज अपने आप से

नासमझ पन्ने लिखे, न मेरी किताब के॥

 

लाख कोशिस कर लिया, छोडकर जाती नहीं

अंगुली पकड़ जो चली, अब छुड़ा पाती नहीं

बाह रे बेटी बनी, छा गई आकाश सी

तेरी सूरत माँ सी, कष्ट दे पाती नहीं॥

 

महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ