कहानी

रामू

रामू यू पी से पंजाब आ गया था। घोर गरीबी के बोझ से द्ब्बे उस के पास अब कोई चारा नहीं रह गया था, बच्चों को भूखे देख उस की पत्नी को तो तकलीफ होनी लाज़मी थी लेकिन रामू एक मर्द होने की हैसियत से पत्नी से भी ज़्यादा परेशान था। उस के गाँव से बहुत लोग पंजाब जा चुक्के थे। जब भी कभी कोई पंजाब से वापस गाँव आता तो उस के कपडे अच्छे होते और उस की जेब में पैसे होते। उस को देख रामू को लगता, जैसे पंजाब वलायत हो। जब रामू ने पंजाब जाने का सोच ही लिया तो पत्नी शीला ने भी कुछ गहने रामू के आगे रख दिए, क्योंकि उस को पता था कि उस का पति जो भी करेगा, अच्छा ही करेगा । गहनों की तरफ रामू बहुत देर तक देखता रहा, उस में यह गहने उठाने की हिम्मत नहीं थी। पत्नी ने हौसला देते हुए कहा, “जी ! गहने इसी काम के लिए तो होते हैं, भगवान् ने चाहा तो फिर बन जायेंगे “, आँखों में आये आंसुओं को रोकते हुए उस ने गहने उठा लिए। सुनिआर के पास गहने बेच कर वोह पंजाब के लिए गाडी में बैठ गिया। पंजाब के एक अनजान शहर में आ कर उस के मन को कुछ हौसला हुआ, जब उस जैसे यू पी से आये और भी लोग बहुत थे जो रोजी रोटी के लिए यू पी से आये हुए थे। परदेस में अपने लोगों का सहारा बहुत होता है। जल्दी ही रामू कुछ लोगों के साथ मिल कर एक गाँव में खेतों में काम करने लगा। इन लोगों ने गाँव के बाहर रहने के लिए एक झौंपडी सी बनाई हुई थी। रात को वहां रहते और दिन को किसानों के खेतों में काम करते। किसान खाने को अच्छा देते थे। रामू ने यहाँ आ कर महसूस किया की यह पंजाबी लोग फराख दिल थे। मजदूरी की कोई कमी नहीं थी। यह सबी दोस्त मिल कर किसी किसान से काम का ठेका कर लेते और मिल कर काम कर देते। पंजाब के हिसाब से तो उन्हें मजदूरी बहुत कम मिलती थी लेकिन इन लोगों के लिए तो यह पैसे बहुत होते थे।

यू पी बिहार से आये लोग बहुत सस्ते में काम कर देते थे और किसानो को इस का फायेदा ही होता था। इस में एक बात और भी थी कि पंजाबी लोगों के बच्चे पढ़ लिख जाने के कारण इस तरह का काम करने से कतराते थे। रामू जो भी कमाता, कुछ पैसे पत्नी को भेज कर शेष बैंक में जमा कर देता। दुसरे सब लोग अपने पैसे अपने घर को भेज देते थे लेकिन रामू के मन में कुछ और ही था। दो साल काम करने के बाद रामू वापस अपने गाँव पहुंचा, पत्नी और बच्चे उसे देख कर खुश हो गए। रामू ने पत्नी को अपने मन की बात बता दी कि वोह सबी पंजाब जायेंगे। सुन कर पत्नी ख़ुशी से फूली नहीं समाई और एक दिन रामू अपनी पत्नी और दोनों बेटों के साथ पंजाब आ गिया। गाँव में एक छोटा सा कमरा सस्ते किराए पर रामू ने ले लिया। दोनों बच्चों को उन्होंने स्कूल में भर्ती करा दिया। बच्चों को स्कूल छोड़ कर रामू की पत्नी शीला गाँव में लोगों के घर का काम करती। रामू की पत्नी गाँव में बहुत खुश थी। इतना अच्छा खाना तो उस ने बहुत सालों से खाया ही नहीं था। रामू और शीला शरीर से अच्छे थे। घर पैसे आने से उन के हौसले बुलंद हो गए थे। गाँव शहर के बिलकुल नज़दीक था। रामू ने एक रिक्शा किराए पर ले लिया। कई कई घंटे वह काम करता और रिक्शे के किराए के पैसे दे कर भी उस को बहुत पैसे बच जाते। एक साल में ही रामू ने बैंक से कुछ कर्ज़ा ले कर अपना रिक्शा ले लिया, जो पैसे वह किराए के देता था वह कर्ज़े की किश्त में तब्दील हो गए । यूं ही रिक्शे का क़र्ज़ खत्म हुआ, उस ने बैंक से क़र्ज़ ले कर एक और रिक्शा खरीद लिया और किराए पर दे दिया। रामू और शीला को अब बहुत हौसला हो गया था । शीला गाँव में सख्त काम करके घर का खर्च उठा लेती और रामू अब रिक्शे पे रिक्शा खरीद कर किराए पर दे रहा था।

बच्चे बड़े हो गए थे और रामू और उस की पत्नी ने बच्चों को शहर के एक हाई स्कूल में दाखल करा दिया। हर सुबह रामू बच्चों को अपने रिक्शे पर बिठा के ले जाता और शाम को ले आता। शहर में अब रामू के रिक्शों का ही बोल बाला हो गया था। अब रिक्शा चलाना रामू ने छोड़ दिया था। उस ने छोटा सा ढाबा सस्ते में किराए पर ले लिया और एक लड़का साथ रख कर काम शुरू कर दिया। काम जल्दी ही चल पढ़ा और अछि आमदनी होने लगी। बेटे मां बाप को इतनी मिहनत करते बचपन से देखते आ रहे थे। एक दिन दोनों बेटों ने आगे पढ़ने से इंकार कर दिया और ढाबे का काम संभालने के लिए बोल दिया। रामू चाहता था, बच्चे आगे पढ़ें लेकिन बच्चों के मन में कुछ और ही था। बच्चों ने ढाबे का काम खुद सम्भाल लिया और देखते ही देखते ढाबे की शकल ही बदल दी। ग्राहक बहुत बढ़ गए थे। बेटों ने साथ की दूकान भी क़र्ज़ ले कर खरीद ली और दोनों दुकानों को एक अछे होटल में बदल दिया। होटल से अच्छी आमदनी हो रही थी और कुछ देर बाद बेटों ने शहर में ही एक मकान खरीद लिया। एक दिन रामू और उस की पत्नी शीला घर में बैठे थे, दोनों बेटे आये और मां बाप के गले लग गए और कहने लगे,” पिता जी आज से आप दोनों कोई काम नहीं करेंगे, आप दोनों ने इतनी सख्त मिहनत करके जो भविष्य हमें दिया है, उस का क़र्ज़ हम सात जन्मों में भी चुका नहीं पाएंगे “, सुन कर दोनों पति पत्नी की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गये, शायद सोच रहे थे कि यू पी के वह दिन और आज के दिन में कितना अंतर आ गया था और यह सब भगवान् की कृपा से ही संभव हो सका था।

6 thoughts on “रामू

  • राजकुमार कांदु

    बहुत बढ़िया प्रेरक कहानी । देश के सभी कोनों में यु पि बिहार से आये लोगों ने अपने मेहनत इमानदारी और हौसले के बूते बड़ी कामयाबी पाई है । रामू भी उनमे से एक है । रामु के मेहनत उसकी पत्नी के हौसले बच्चों के सदाचार और आपकी लेखनी को सलाम । धन्यवाद ।

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने मेहनत, समझदारी और प्यार का प्यारा पैगाम दिया. अति सुंदर रचना के लिए आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      लीला बहन , बहुत देर पहले मैंने इन लोगों को अपने गाँव में काम करते हुए देखा था और अब सभी लोग बताते हैं किः इन लोगों ने बहुत उन्ती की है .इसी को ले कर मेरे दिमाग में यह कहानी लिखने की तमन्ना जागी .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    आपका लेखन बहुत प्रभावित करता है

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    आपका लेखन बहुत प्रभावित करता है

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      बहन जी , आप का कॉमेंट हमेशा मुझे ख़ुशी देता है और पर्भावत करता है, बहुत बहुत धन्यवाद .

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