गीतिका/ग़ज़ल

हुस्न की ये दिल चुराने की अदा…

हुस्न की ये दिल चुराने की अदा।
तोड कर दिल मुस्कुराने की अदा॥

मार डालेगी हमें इक रोज ये।
हाय यूं नजरे झुकाने की अदा॥

हर गुजरता पल सिखाता है हमें।
ज़िन्दगी का गीत गाने की अदा॥

गिरगिटों से छीन ली है दोस्तों।
रहबरों ने रंग दिखाने की अदा॥

देख कर उनको बहुत हैरान हूं।
बेच सपने खूब छाने की अदा॥

कर न दे हम को कहीं मदहोश ये।
आँखों से मदिरा पिलाने की अदा॥

याद है हमको अभी तक रहबरों।
जीत कर हमको भुलाने की अदा॥

हक हसीनों का रहा है उम्र पर।
वाह हरदम कम बताने की अदा॥

क्यूं दिलों में बस रही है क्या कहूँ।
हार कर भी मुस्कुराने की अदा॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.