मुक्तक : बेटी
शान शौकत दिखाना चलन हो गया
आँख से नीर जैसे हवन~~हो गया
सज रही डोलियाँ जल रही बेटियाँ
आज इन्सानियत का पतन हो गया
उजाडे बाग को अपने चमन खिलने नही देते
घिरे हैं रूढियों से यूं सपन सजने नही देते
छुपे हैवान कुछ बैठे हमारे इस गुलिस्ताँ मे
मसल देते कली को हैं, सुमन बनने नहीं देते
खिलौना क्यूँ समझते हो ये’ घर की शान है बेटी
बडी नाजो पली माँ बाप का अरमान…….है बेटी
नहीं भक्षण करो इनका यही आधार दुनिया का
बसी है वेद ग्रंथो में धरा की जान……….है बेटी
~~संयम~~