गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : आज मैं अपनी सफाई दे दूँ

आज मैं अपनी सफाई दे दूँ
कुछ रुसवाई, कुछ जगहंसाई दे दूँ !
हरदम तु अब तन्हा क्यूं रहे,
थोडी सी अपनी तन्हाई दे दूँ !
अपने जज्बातों की कैद से तुझे,
आ तेरे हिस्से की रिहाई दे दूँ !
प्रेम, स्नेह जहां सब मिलता है,
ले, वो दुकान जमीजमाई दे दूँ !
है उदास कागज़ कलम फिर,
अब इन्हें सत् की रोशनाई दे दूँ !
नेकी, ईमान, इज़्ज़त तेरी ‘जय’,
जीवनभर की खरी कमाई दे दूँ !
जयकृष्ण चांडक “जय” 

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से