कविता : मत मारो इन बच्चियों को
मत मारो इन बच्चियों को, माँ कहाँ से पाओगे ।
मत तोड़ो इन कलियों को, फूल कहाँ से लाओगे।
इनके मधूर-मुस्कानो से घर- आंगन गूँज उठती,
नहीं रहेंगी दुनियां में तो ढुढने बहन कहाँ जाओगे।
मम्मी-पापा कहते हुए तुम्हारे पास कौन आयेगी,
मुस्कुराती हुई बच्ची को, फिर कैसे खेलाओगे।
रोते बिलखते ढुढते हुए कौन तु्म्हें पुकारेगी,
नहीं रहेगी यह बच्ची तो फिर किसको मनाओगे
हमारे बीच से यह गुड़िया जब समाप्त हो जायेंगी।
तब एक दूजे के शादी में कैसे धुम-धाम मचाओगे
मत करो कन्या भ्रूण हत्या सृष्टि विलुप्त हो जायेगी
फलता- फूलता यह संसार फिर कहाँ से पाओगे।।
— रमेश कुमार सिंह