ग़ज़ल
मेरी बेचैनी ज़ुबां पा गई तो क्या होगा,
दिल की बात लब पे आ गई तो क्या होगा
मैंने आँसू ना बहाने की कसम खाई है,
पर तेरी याद जो रूला गई तो क्या होगा
जिस दिए के सहारे रोशनी है रस्ते में,
हवा उसे भी गर बुझा गई तो क्या होगा
ये बगावत की जो हल्की सी लहर उठी है,
बन के आँधी तुम पे छा गई तो क्या होगा
इक फूल के मरने पे गमज़दा हो तुम,
खिज़ां जब चमन को ही खा गई तो क्या होगा
कुछ तो सोचो शहर में आग लगाने वालो,
घर अपना भी ये जला गई तो क्या होगा
— भरत मल्होत्रा
सुदंर