संस्मरण

मेरी कहानी 150

दीपो से मिल कर हम राणी पर आ गए और सामान पैक अप्प करना शुरू कर दिया। कुछ दिन गाँव में लोगों से मिले, गियान से बातें कीं और एक दिन निर्मल हमें फगवाङे रेलवे स्टेशन पर छोड़ आया और कुछ देर बाद हम दिल्ली के लिए ट्रेन में बैठे इस यात्रा का आनंद ले रहे थे। अपने लोगों के साथ ट्रेन में बैठ कर सफर करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। अब तो इंगलैंड की ट्रेनों में भी पिछले बीस सालों से सफर नहीं किया है, क्योंकि यहां भी जाते थे, अपनी गाड़ी में जाते थे लेकिन इंगलैंड की ट्रेनों में और इंडिया की ट्रेनों में सफर करने में एक ही अंतर् होता था कि इंडिया में हमारे लोग ही होते थे, उन की बातें, ट्रेन में कभी कोई बेचने वाला आ जाना, कभी किसी का डिब्बे में आ कर गाना, तरह तरह की आवाज़ों में सब अपना ही अपना दिखाई देता था। शाने पंजाब क्योंकि छोटे स्टेशनों पर खड़ी नहीं होती थी, इस लिए हमें कोई दिक्कत नहीं हुई और जल्दी ही दिल्ली आ गए। टैक्सी ली और तिलक नगर पहुँच गए। दूसरे दिन अवतार सिंह की तीनों बहुएँ, कुलवंत और मैं शाम को शॉपिंग करने के लिए चले गए। कुलवंत ने बहुत कुछ खरीदा और सभी को खिलाना पिलाना मेरी ज़िम्मेदारी थी। औरतों का खाना भी अक्सर चटपटा ही होता है, खूब पकौड़े चाट बगैरा खाई गई। कुलवंत ने गोलगप्पे खाये और उस को वहीँ पता चल गया कि यह गोलगप्पे नहीं खाने चाहिए थे, क्योंकि उस के पेट में कुछ कुछ गड़बड़ होने लगी थी। ऐसी बात विदेशों में रहने वाले सभी के साथ अक्सर हो जाती है क्योंकि इंडिया का पानी और सब्जियाँ फरूट में कुछ ऐसी चीज़ है जो कभी कभी तकलीफ देने लगती है उस दिन तिलक नगर में बुध बाजार भी था और सारी सड़कें बेचने वालों से भरी हुई थीं। मैंने भी एक चमड़े की बैल्ट खरीदी और एक टाइमेक्स घड़ी खरीदी। घूम घाम के घर आ गए और पहले कुलवंत को पेट के लिए एक कैप्सिऊल दिया जो हम साथ ले कर आये थे। imodium के यह कैप्सिूल हम जरूर ले के आते हैं। इस से जल्दी आराम आ जाता है।
दुसरी सुबह हम दिली एअरपोर्ट पर पहुँच गए और एक घंटे बाद हम जहाज़ में आराम से बैठे इस सफर का आनंद ले रहे थे। यह भी एक अजीब बात ही है कि जब हम भारत आते हैं तो हमें मन में उत्सुकता होती है कि जल्दी से इंडिया पहुँच जाएँ लेकिन जब वापस आते हैं तो, यह ख़ुशी होती है कि जल्दी से इंगलैंड पहुँच जाएँ। भारत जाएँ या वापस इंगलैंड आएं, भारत की एअरपोर्ट हमें ऐसे मालूम होती है, जैसे एअरपोर्ट पुलिस स्टेशन हो। एक भय सा लगता रहता है कि कहीं कोई पासपोर्ट में ऐसी गलती ना निकाल दें कि हमें वहां परेशान होना पड़े । एअरपोर्ट पर जितने अफसर हैं, सभी पुलिस वाले दिखाई देते हैं। जब एअरपोर्ट से फार्ग हो जातें हैं तो एक अजीब सी ख़ुशी होती है। यूरप में ऐसी कोई दिक्कत नहीं होती एक बात यह भी महसूस की है कि एअर होस्टेस अंग्रेज़ों के साथ तो हंस हंस बातें करती हैं लेकिन अपने लोगों को ऐसे समझती हैं जैसे सब इंडियन अनपढ़ हों। खैर हम ने हैड फोन ले लिए थे और सामने टीवी पर एक अंग्रेज़ी फिल्म का आनंद ले रहे थे। इस जहाज़ में ज़्यादा गोरे लोग ही थे। जब हम वापस इंगलैंड को आते हैं तो दिन बड़ा ही हुए जाता है क्योंकि घड़ी का टाइम बदलता रहता है और सर्दिओं में जब हम इंगलैंड पहुँचते हैं तो साढ़े पांच घंटे का फरक हो चुक्का होता है और अभी भी लौ होती है। हीथ्रो एअरपोर्ट से बाहर आ कर हम ने टैक्सी ली और पिंकी के घर पहुँच गए। देर रात तक बातें करते रहे और पिंकी के लिए जो इंडिया से लाये थे, दे दिया गया। सुबह उठ कर कोच में बैठे और कुछ घंटे बाद अपने घर आ गए।
जब घर आये तो कुछ देर बाद संदीप और जसविंदर मुस्करा रहे थे। लगता था वह हमें कुछ बताना चाहते थे। संदीप बोला,” बाबा ! बीबी ! “, इस बात से जसविंदर सर नीचा करके कुछ शर्मा और मुस्करा रही थी। मैंने तो इस बात पे कोई धियान नहीं दिया लेकिन कुलवंत ने जसविंदर से पुछा,” सच ?”, जसविंदर ने हाँ में सर हिला दिया। कुलवंत ने जसविंदर को गले लगा लिया और ख़ुशी ख़ुशी हंसने लगी और मुझे बोली, ” हम अब दादा दादी बनने वाले हैं “, घर में आते ही यह शुभ समाचार हम को मिल गया और फिर मुझे बोली,” मुझे तो उस दिन बंगला साहब गुर्दुआरे में ही यकीन हो गया था कि मुझे कुछ अच्छी खबर जरूर मिलेगी “, मुझे भी वह दिन याद आ गया, जब कुलवंत ने बंगला साहब गुर्दुआरे माथा टेकने के बाद बोला था कि उस को जरूर कुछ मिलेगा और मैंने इस बात पर कोई धियान नहीं दिया था। घर में अब ख़ुशी का वातावरण हो गया, हम दोनों का मन खुश खुश रहता, दादा दादी बनने का भी अपना ही एक लुत्फ़ होता है। कैसे दिन बदल जाते हैं, कोई समय था जब हम अपने बच्चे होने पर खुश थे और आज बच्चों के बच्चे होने पर ख़ुशी हो रही थी। एक बात हम ने यह भी महसूस की है कि अपने सुसराल में जब बेटिओं के बच्चे होते हैं तब भी बहुत ख़ुशी होती है लेकिन जब पोता पोती हो तो उस का एक अपना ही लुत्फ़ होता है, चाहे कोई कितना भी कहे कि दोहते और पोते में कोई फरक नहीं होता लेकिन कुछ तो फरक हो ही जाता है क्योंकि दोहता दोहती किसी और के घर का सरमाया होता है और पोता पोती बुढ़ापे में दादा दादी के लिए दोस्त जैसे होते हैं।
मैं काम पर चले गया। मेरे घुटने ने फिर मुझे दुःख देना शुरू कर दिया और साथ ही हरनिआं का ऑपरेशन फिर से दर्द करने लगा। यह मेरे काम की वजह से था। दर्द दिनबदिन बढ़ रहा था और एक दिन तो मेरा सीरीयस एक्सीडेंट होते होते बच गया। चाहे कितना भी हौसला रखें लेकिन कभी कभी दुःख के आगे इंसान हाथ खड़े कर देता है। एक हफ्ता ही मैंने काम किया लेकिन इस के बाद काम पे नहीं जा सका। मैं अपनी डाक्टर मिसज रिखी की सर्जरी में गया और उस को बताया। उस ने चैक अप किया और कुछ देर बाद बोली,” गुरमेल सिंह ! एक बात मैं तुझे बताऊँ कि बार बार ऑपरेशन करने से मसल कमज़ोर हो जाते हैं और फिर ऑपरेशन मुश्किल हो जाता है, इस लिए मैं तुझे मशवरा देती हूँ कि तुम काम से पेंशन ले लो, मैं लिख कर दे देती हूँ कि तुम काम के फिट नहीं हो “, मैं कुछ घबरा गया और कुछ देर बाद बोला, ” डाक्टर साहब मुझे सिक नोट दे दो “, चार हफ्ते का सिक नोट ले कर मैं बाहर आ गया। अभी अभी ख़ुशी मिली थी और अब यह मुसीबत गले आ पडी थी। सोचता हुआ बस पकड़ के मैं सिक नोट देने गैरेज में जा पहुंचा। दफ्तर में जो कलर्क था, वह पंजाबी ही था और मुझे जानता ही था। मैंने सारी बात उस को बताई तो उस ने कहा,” मिस्टर भमरा ! अगर तेरा डाक्टर मदद कर रहा है तो तू बहुत लक्की हैं क्योंकि तुझे early retirement मिल जायेगी, बहुत साल काम किया है, मज़े करेगा “, सिक नोट दे कर मैं घर आ गया लेकिन मन में किसी काम को करने की रूह नहीं थी।
एक महीने बाद मैनेजर का खत घर आ गया और मुझे ऑफिस में बुलाया। बहुत से सवाल उस ने पूछे और मैंने कहा कि वह मेरे डाक्टर से पूछ लें। मैं ऑफिस से आ कर अपनी डाक्टर से मिला। मिसज रिखी ने एक स्पैश्लिस्ट को खत लिख दिया ताकि वह चैक अप्प करके अपना सैकंड ओपिनियन बता दे। हफ्ते बाद ही स्पैश्लिस्ट की अपॉएंटमेंट मुझे मिल गई। जब स्पैश्लिस्ट के पास पहुंचा तो आधा घंटा उस ने मुझे चैक किया और मुझे बता दिया कि वह इस की रिपोर्ट मेरे डाक्टर को भेज देगा। यह दिन मेरे लिए ज़िंदगी के सब से कठिन दिन थे। रोज़गार का सवाल था और यह भी विचार आ रहे थे कि इस बिगड़ती सिहत के साथ कैसे काम कर सकूंगा और एक बात और भी थी कि उस वक्त मेरी उम्र सिर्फ 58 साल ही थी और पेंशन मिलने में अभी 7 साल रहते थे। मेरी डाक्टर ने मुझे चार हफ्ते का एक और सिक नोट दे दिया। कुछ दिन बाद स्पैश्लिस्ट की रिपोर्ट भी आ गई और रिपोर्ट में इतना कुछ लिखा हुआ था कि मेरे लिए बस चलाना मेरे लिए सेफ नहीं था। हमारी यूनियन का चेअर मैंन मिस्टर हैरी बहुत अच्छा इंसान था, वह मेरे घर आया, उस के पास कुछ फ़ार्म थे जो उस ने मेरे सामने ही भरे और अपनी तरफ से भी उस ने बहुत कुछ लिखा। मेरे साइन ले कर उस ने वह फ़ार्म DVLA को भेज दिए। DVLA वह डिपार्टमेंट है जो हर प्रकार के ड्राइविंग लाइसेंस जारी करता है।
दो हफ्ते बाद मुझे DVLA से खत आया जिस को पढ़ कर मेरा सर चकरा गया, लिखा था कि डाकटरों की रिपोर्ट के मुताबिक आप का PSV लाइंसेंस रीवोक किया जाता है यानि वापस लिया जाता है और अगर मैं इस की अपील करना चाहूँ तो फ़ार्म भरके भेज दूँ। मैं उसी वक्त गैरेज में मिस्टर हैरी के पास जा पहुंचा। उस ने खत पढ़ कर मुझे कहा कि मैं कोई चिंता न करूँ और उस ने मुझे यह भी बताया कि अब मैनेजमैंट मुझे काम से जवाब दे देगी और इस के बाद हम को पेंशन के लिए एप्लाई करना होगा। हैरी की बात सही थी, कुछ अर्सा बाद मुझे मैनेजर ने अपने दफ्तर में बुलाया और कहा कि उसे अफ़सोस था कि ड्राइविंग लाइसेंस रीवोक हो जाने के कारण वह अब मुझे काम से फार्ग कर देंगे और चार हफ्ते का टर्मिनेशन नोटिस पकड़ा दिया। नोटिस ले कर मैं हैरी के दफ्तर में चले गया और नोटिस उस को दिखाया। इस शख्स हैरी को मैं कभी नहीं भूलूंगा। हैरी का सुभाव इतना अच्छा था कि अँगरेज़ होते हुए भी वह हमारे लोगों की अपने दिल से मदद करता था। हैरी मुझे कहने लगा कि मैं अपने डाक्टर की रीपोर्ट और स्पैश्लिस्ट की रिपोर्ट ले कर आऊं। मेरे मन में खलबली मची हुई थी। मैं उसी वक्त गाड़ी ले कर अपनी डाक्टर मिसज रिखी की सर्जरी में जा पहुंचा और उस को बताया कि मुझे मैडीकल रिपोर्ट की जरुरत थी। मिसज रिखी ने अपनी सैक्रेटरी को बुलाया, एक पेपर पर रिपोर्ट लिख कर उस को पकड़ा दी कि वह इसे टाइप करके उस के दसतखत करवा ले और मुझे दे दे और मुझे रिसेप्शन में इंतज़ार करने को बोल दिया। आधे घंटे बाद सैक्रेटरी ने एक लफाफा मुझे पकड़ा दिया। लफाफा ले कर मैं फिर गैरेज में हैरी के दफ्तर में जा पहुंचा। हैरी ने दोनों रिपोर्टें पड़ीं और बोला, ” मिस्टर भमरा! फ़िक्र न कर, आप को पेंशन जरूर मिलेगी ” और उस ने कुछ फ़ार्म भरे और लफाफे में दोनों डाकटरों की रिपोर्ट डालीं और मुझे कहा कि मैं इसे पोस्ट कर दूँ। हैरी का धन्यवाद करके मैं बाहर आ गया और सड़क पर एक पोस्ट बॉक्स में लैटर डाल दिया।
अब मेरे लिए इंतज़ार के सिवा कोई चारा नहीं था क्योंकि सब कागज़ी कार्रवाई हो चुकी थी। एक बात की मुझे तसल्ली थी कि मेरा बस चलाने का लाइसेंस ही खत्म हुआ था और कार चलाने की छूट थी। मेरी तनखुआह मुझे बराबर मिल रही थी। एक एक दिन मुश्किल से बीतता लग रहा था। इस दौरान मेरा सुभाव कुछ चिड़चिड़ा हो गया था, खामखाह कुलवंत को किसी बात पे झिड़क देता। काम करते 41 साल हो गए थे और अब यह एक दम घर बैठ जाना मुश्किल लग रहा था और सब से चिंताजनक बात यह थी कि आगे क्या होगा। कुछ हफ्ते बाद मुझे बर्मिंघम पेंशन डिपार्टमेंट से एक लैटर आया और उस में लिखा था कि मैं अपना और अपनी पत्नी का पासपोर्ट ले कर आऊं। पासपोर्ट ले कर मैंने बर्मिंघम के लिए बस पकड़ ली और दफ्तर ढूँढ़ते ढूँढ़ते मैं ग्राहम स्ट्रीट के गुर्दुआरे के पास पहुंचा। नंबर देखता देखता मैं दफ्तर के पास पहुँच गया। यह दफ्तर गुर्दुआरे के बिलकुल सामने था। एक कलर्क को मैंने वह खत दिखाया। उस ने मुझे बैठने के लिए बोला और खत ले कर एक दूसरे कमरे में चला गया। जब वह आया तो उस के हाथ में बहुत से कागज़ थे। उस ने पासपोर्ट मेरे हाथ से लिए, उन की फोटो कॉपी की और कई जगह कागज़ों पर मेरे दस्तखत करवाए और मुझे बोला कि वह इस का जवाब जल्दी दे देंगे। ज़्यादा वक्त नहीं लगा और मैं दफ्तर के बाहर आ गया और बस पकड़ ली।
दो हफ्ते ऐसे ही बीत गए। फिर एक दिन एक बड़ा सा लफाफा पोस्ट में आया। जब खोल कर देखा, जल्दी जल्दी पढ़ा तो मालूम हो गया कि आखिरकार मुझे पेंशन मिल गई थी। जितना स्ट्रैस था, उतनी ही ख़ुशी मुझे मिल गई। पेंशन का एक एक दिन का हिसाब लिखा हुआ था और क्योंकि यह पेंशन मुझे मैडीकल ग्राउंड के कारण मिली थी, इस लिए उन्होंने मेरी पेंशन जितने सालों की थी, उस के साथ छै साल और आठ महीने और जमा कर दिए थे जो उन का क़ानून था। यही नहीं, उन्होंने मुझे काफी पैसे भी साथ में दे दिए। अब मैं ख़ुशी में फूला नहीं समाता था। घर में ख़ुशी का माहौल बन गया। पेंशन डिपार्टमेंट का यह खत पता नहीं मैंने कितनी दफा पड़ा। कुछ दिन बाद मुझे हैरी का टेलीफोन आया कि मैं उस को मिलूं। जब मैं दफ्तर में पहुंचा तो हैरी ने मुझे वधाई दी और साथ ही एक और फ़ार्म पर दस्तखत करने को कहा। मेरे पूछने पर उस ने बताया कि जो ड्राइवर मैडीकल कंडीशन की वजह से रिटायर हो, उस को यूनियन की तरफ से भी पैसे मिलते हैं क्योंकि हर ड्राइवर की इंशोरेंस यूनियन की तरफ से की हुई है। मुझे इस का पता ही नहीं था और यह मेरी ख़ुशी में एक और इज़ाफ़ा हो गया।
कुछ ही दिन बाद यूनियन की तरफ से भी मुझे एक चैक मिला और मौजां ही मौजां वाली बात हो गई। 5 मई 2001 से मेरी पेंशन शुरू हो गई। क्योंकि मैं अभी भी सिक नोट पे था, इस लिए मुझे हकूमत की तरफ से भी हर हफ्ते पैसे मिलने लगे। कभी ख़ुशी कभी गम के कथानुसार हमारे अच्छे दिन आ गए थे। जब से इंगलैंड की धरती पर पैर रखा था, बस काम ही काम किया था। अब हम दोनों मीआं बीवी आज़ाद हो गए जैसे महसूस कर रहे थे, लगता था अब ही हम इंगलैंड में आये थे और इंगलैंड क्या है हमें आज ही पता चला हो । चलता . . . . . . . . .

7 thoughts on “मेरी कहानी 150

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। पूरी किश्त पढ़ी। आपके जीवन की कहानी रोचक व दिलचस्प है। आप को स्वास्थ्य संबंधी अनेक मुसीबतों से गुजरना पड़ा है। ईश्वर करे कि आपका भावी समय खुशिओं से भरपूर हो और हर्षोल्लास से व्यतीत हो। सादर।

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। पूरी किश्त पढ़ी। आपके जीवन की कहानी रोचक व दिलचस्प है। आप को स्वास्थ्य संबंधी अनेक मुसीबतों से गुजरना पड़ा है। ईश्वर करे कि आपका भावी समय खुशिओं से भरपूर हो और हर्षोल्लास से व्यतीत हो। सादर।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद मनमोहन भाई .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब भाई साहब ! अंत भला तो सब भला !

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद विजय भाई .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी,
    ”कभी ख़ुशी कभी गम,
    जीवन है इन दोनों का अनोखा संगम.”
    पूरा एपीसोड गतिशीलता और रोचकता से सराबोर है. एक और अद्भुत एपीसोड के लिए आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद लीला बहन , शायेद यही जीवन है और हर इंसान आगे बढ़ता रहता है और जिंदगी चलती रहती है .

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