कविता

मुक्त काव्य…… : भीगता आदमी

बरसात में यह कौन है?
जो कुंडी खटखटा रहा है
देखों तो कौन बेअदब
अभी पानी भीगा रहा है॥
कटकटा रहा है दाँत उसका
न जाने क्या सुना रहा है?
बुला लो अंदर उसको
जो अपनी ठंड हिला रहा है॥
दे दो किसी पुराने पड़े हुये कपड़े को
कह दो निचोड़ दे तरसते हुये पानी को
साथ में दो रोटी भी देना उसे बासी
घसीट कर लाया है जिसने ज़िंदगानी को॥
देखों तो लगता है बादल छट गया है
आसमान से टपकता सावन हट गया है
देख लो यही है बिना डाली का झूला
डोर बिना ही झूल कर कैसा सो गया है॥
चला जाएगा इसकी भी अपनी डगर है
आज यहाँ कल वहाँ छत से बेखर है
देख लो गौतम इस अनेरुवा आदमी को
बन गई जागीर तो इंसान कितना जबर है॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ