कहानी

एक चिड़ियाघर ऐसा भी

मेरा दफ़्तर एक चिड़ियाघर है। यह मैं अब तक नहीं जानता था। अभी-अभी मुझे पता चला है और मैं सदमे में हूँ। जब मैं दफ़्तर पहुंचा तो मुझे अपना दफ़्तर देखकर कुछ भी नहीं लगा। सब कुछ मामूली सा था।
दरअस्ल मैं पिछली रात एक तिलिस्मों वाली पुरानी फिल्म देखकर सोया था। बात ये है कि पिछले कुछ हफ़्तों से मुझे नींद नहीं आती तो टी.वी. चला दिया करता हूँ।
दिन में इतना व्यस्त रहता हूँ कि रात को अचानक इतना सारा ख़ाली समय पाकर दिमाग़ चौंधिया जाता है जैसे ढेर सारा सोना देखकर आँखें चौंधिया जाती हैं और इसलिए सो नहीं पाता।
दो दशक पहले तक कोई लोरी सुना देता था तो नींद आ जाती थी। फिर पिछले एक दशक से कुछ पढ़कर नींद आने लगी।
पहले पहल नींद नहीं आती थी तो गणित को लगाने की बजाय पढ़ने लगा तो नींद यों ही भागी चली आती थी मेरे पास। फिर जब कुछ पढ़ने में मन लगने लगा तो पहले कहानियाँ और फिर उपन्यास पढ़ते-पढ़ते सोने लगा।
मगर हाल में किस्से कहानियाँ पढ़ने से जी ऊबने लगा तो मैं उन्हें देखने लगा याने कहाँनियों और उपन्यासों को फिल्मों के रूप में देखने लगा।
हाँ तो मैं कह रहा था कि पिछली रात कोई तिलिस्मी जादू से भरी फिल्म देखते-देखते सोया था। फिल्म दिलचस्प थी इसलिए समय का ख़याल रखे बिना पूरी फिल्म देखकर ही सोया। इसलिए आँखों में अभी भी नींद के साए बाक़ी हैं और जम्हाइयाँ रह-रहकर जबड़ों को योगासन करा रही हैं और बाहों को अँगड़ाइयां लेने के लिए वर्कस्टेशन छोटा पड़ जा रहा है। इस वजह से हाथ दूसरे के वर्कस्टेशन में अतिक्रमण कर दे रहे थे। नतीजा यह होता था कि बग़ल वाले वर्कस्टेशन से गुर्राहट की आवाज़ आने लगी।
मैंने उचककर देखा तो सौरभ एक शेर में तब्दील हो गया था। वह अपनी चेयर पर जम के बैठा था जैसे वह हमेशा बैठता था और पूँछ से कम्प्यूटर और फाइलों को हाँक रहा था जैसे वो अक्सर कोई खोई हुई फाइल वहाँ खोजता हुआ नज़र आता था। वह पहले भी जब अपनी चेयर पर हाथ-पाँव फेंककर अंगड़ाई लेता था और उसकी चेयर पर उसका फूला हुआ तोंद दिखता था तो लगता था चेयर अब टूटी, तब टूटी। आज भी वह अपने सारे पंजे चेयर पर ऐसे टिकाए बैठा है कि चेयर अब टूटी, तब टूटी। मैं चेयर के टूट जाने पर उसे गिरते हुए नहीं देख सकता इसलिए अपनी सीट पर बैठ जाना चाहता था। इसके अलावा वह इस समय मेरे हाथ के अतिक्रमण से गुस्सा होकर वैसे ही लाल आँखें दिखा रहा है जैसा वह तब कभी दिखाया करता था जब उसे कोई एक्स्ट्रा काम बोल दिया जाता था।
मैं डर के मारे वापस अपनी सीट पर वैसे ही दुबक गया जैसे मैं तब दुबक जाया करता था जब वह मुझसे कहता था कि चल कल कहीं घूम के आएँगे और अपना आईडी रामलाल को स्वाइप करने के लिए दे देंगे जो यह काम पचास-पचास रुपए में कर देगा।
मैं हमेशा से जानता था कि सौरभ एक शेर है। वह इस जंगल का राजा है और राजा की तरह जीता है। अपने मन की करता है और किसी की नहीं सुनता। बाक़ी सारी दुनिया उसके आगे अदना सा चुह्चुहाता हुआ चूहा है। हाँ, मैं जानता था कि वो एक शेर है मगर आज देख भी लिया।
मैं चुपचाप अपने कंप्यूटर में घुस गया। मगर इस अचानक बदलाव के कारण मैं अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा था इसलिए शेयर मार्केट में लगाए अपने शेयरों की स्थिति देखने में गुम था कि तभी।
तभी बड़े-बड़े नथुने जो ज़ोर-ज़ोर से सांस ले रह थे और जिनके नीचे मोटे भद्दे होंठ थे और होंठों के बीच बड़े-बड़े गंदे दाँत थे, मेरी आँखों और कंप्यूटर के बीच आ गए। मैं एकदम से डर गया। फिर देखा तो यह तो रामनारायण है। गधा कहीं का। इस तरह से कोई करता है क्या? उसे समझ में नहीं आता क्या कि मैं कोई महत्वपूर्ण काम कर रहा होऊँगा। यह कोई तरीक़ा है भला। मैं उस पर चिल्लाना चाहता था कि ‘गधा कहीं का’।
मगर मैं क्या चिल्लाता, वह तो पहले ही गधा बन चुका था। उसकी पीठ पर फाइलों का गट्ठर था जो वो हरेक टेबल पर बांटता चल रहा था।
मैंने उसकी पीठ से अपनी तीन फाइलें निकाल लीं जो बड़े बॉस से साइन होकर आ गई थीं। फिर वह दुम हिलाता और खींसे निपोरता आगे बढ़ गया।
मैंने देखा कि जो तीन फाइलें मैंने अपनी समझकर उठाई थीं, उसमें से ऊपर और नीचे वाली फाइलें तो बक़ायदा मेरी निकलीं, मगर बीच वाली प्रियंका की थी, जो मेरे पीछे वाले वर्कस्टेशन पर बैठती थी। मैंने स्टाइल में अपनी रिवाल्विंग चेयर घुमाई और फाइल उसकी चेयर की तरफ घुमाकर आवाज़ दी “प्रियंका”।
उसकी चेयर मेरी तरफ घुमी तो मैंने देखा वहाँ एक बड़ी भारी नागिन बैठी थी। अपनी सारी पेट-पूँछ समेटकर चेयर पर गोलाकार मोड़ी हुई थी। उसका शरीर ऑफिस की ट्यूबलाइट्स में काला, चिकना, फिसलन से भरा दप-दप चमक रहा था। हाँलाकि उसकी चायनीस आँखें बहुत कम दीख पड़ रही थीं मगर जितनी दीख पड़ रही थीं उतने में ही लाल-लाल गुस्से से फुँफकारता चेहरा दीख पड़ रहा था।
उसका यह रूप मैंने पहले भी देखा था। जब कोई रिया मैडम की तारीफ़ करता था। तब भी वह ऐसे ही नागिन की तरह फुँफकारती थी और ज़हर उगलने लगती थी। मगर आज तो मैंने कुछ कहा भी नहीं। बस फाइल उसकी ओर बढ़ाई है और उसने अपने फन से दो आपस में लिपटी, सरसराती, फड़फड़ाती जीभें निकालीं और उन जीभों में फाइल लपेटकर क्षणभर में कुर्सी पलट ली और अपने काम में व्यस्त हो गई।
इतने में दुलकी चाल चलते हुए रामनारायण आया और अपने मजबूत दांतों के बीच मेरी टाई पकड़कर खींचने लगा।
“अरे भाई छोड़। ये कहाँ ले जा रहा मुझे। अरे छोड़ न।”
वह मुझे मेरे इमीडिएट बॉस के केबिन तक खींचकर ले आया और दरवाज़े के बाहर छोड़कर चला गया। मैं कशमकश में वहीं खड़ा रहा कि भीतर कैसे जाऊँ। कल ही इस बॉस ने मुझे झाड़ लगाई थी कि मैंने वो नोट उन्हें बाईपास करते हुए सीधे बिग बॉस से साइन के लिए कैसे भेज दिया। और शायद उन्हें पता चल गया है कि आज भी मैंने तीन फाइलें डायरेक्टली बिग बॉस को भेज दी थीं। दो फाइलें तो मेरे पास वापस लौट आई हैं फिर इनको कैसे… कहीं तीसरी फाइल इनके हाथ तो नहीं लग गई।
शीशे के उनके केबिन के ग्लेज़ड रिब्बनों के बीच से मैंने अंदर देखने की कोशिश की तो केवल टेबल ही देख पाया। पर उससे ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि टेबल पर मैंने उस फाइल को देख लिया। अब मेरा दिल धक से हो गया। धड़कनें बढ़ गईं तो ख़ुद को सामान्य करने के लिए अपनी कुर्सी पर फिर आकर बैठ गया और सोचने लगा कि इस छुट्टे साँड का सामना कैसे करूँ।
अभी अपनी सोच में डूबा हुआ था कि मेरी आँखों को सुकून देने वाली रिया मैडम ने फ्लोर पर एंट्री ली। मैं हमेशा से उनके ड्रेसिंग सेंस का क़ायल था। आज तो ग़ज़ब लग रही थीं ठीक उस दिन की तरह जिस दिन बॉस ने एक सक्सेस पार्टी रखी थी और वें मोरपंखी साड़ी में क्या ग़ज़ब लग रही थीं।
आज तो वह नाचते मोर में परिवर्तित हो गई हैं। अपने सजीले पंख पूरे के पूरे फैलाकर क्या अदा से चली आ रही हैं। उफ! वर्कस्टेशनों के बीच के रास्ते की सारी जगह उनके फैले हुए पंखों ने घेरे ली है और हर वर्कस्टेशन से उनके नाज़ुक पंख टकराते चल रहे हैं।
उनका एक पंख तो राजीव सर के केबिन के अंदर जा गिरा। उन्होंने पहले तो अपनी छोटी-छोटी आँखों से आश्चर्यचकित होकर उन्हें देखा। फिर मुस्कुराते हुए उस पंख को अपनी सूँड़ में उठाकर अदब से सलामी दी। रिया मैडम भी दो राउंड नाच गईं। फिर आगे बढ़ गईं। फिर आगे बढ़ आईं। वे उन्हें जाता हुए देखते ही रहे।
वे अब आगे बढ़ आईं। बढ़ते-बढ़ते मेरे और प्रियंका के वर्कस्टेशनों के बीच से गुज़रीं तो उनके पंख मेरे और प्रियंका के वर्कस्टेशन से भी टकराते हुए जा रहे थे। मुझे तो बहुत अच्छा लगा और जी किया कि एक पंख खींच लूँ तो सुकून मिल जाए। मगर उनकी चमकीली नीली गर्दन और सर के ताज को देख सब कुछ भूलकर बस मंत्रमुग्ध रह गया।
मुझे तो सुकून मिला मगर प्रियंका को शायद मैडम का ये जेश्चर पसंद नहीं आया और उसने मुड़कर अपनी जुड़वा जीभों से रिया मैडम पर वार कर दिया। मगर रिया मैडम भी सतर्क थीं। उन्होंने चोंच से ऐसा वार उसकी चोंच पर किया कि वह तड़फड़ा उठी और, और ज़ोर से सांसे भरने लगी, फुँफकारने लगी, चीत्कारने सी लगी।
चोट खाई हुई प्रियंका अब लड़ाई के मोड में उतर आई और कुर्सी से भी। रिया मैडम ने भी अपने पंख समेट लिए और पलक झपका-झपका कर उसे देखने लगी। दोनों की आँखें एकदम दम साधे एक-दूसरे पर केन्द्रित थीं।
प्रियंका ने गोल-गोल घुमते हुए फुँफकारना शुरू किया। रिया मैडम ने भी चिंहुकना शुरू किया जैसे बिल्ली मियाऊँ की जगह चियाऊँ-चियाऊँ चिल्ला रही हो।
इनके शोर से जैसे सारा जंगल जाग उठा था…..मेरा मतलब सारा ऑफिस अपनी जगह से खड़ा होकर उचक-उचककर देखने लगा। यहाँ तक कि फ्लोर के दूसरे कोने में बैठने वाली नज़मा इस लड़ाई में भाग लेने दौड़ते हुए आई। अरे नज़मा तो नेवले में बदल गई है। मगर उसके पहुँचते-पहुँचते ही रिया मैडम ने खेल ख़तम कर दिया।
उन्होंने प्रियंका के खुले जबड़ों के बीच जम्हाई लेते बड़े-बड़े दाँतों को नज़रअंदाज़ किया और उसकी खोपड़ी पर पंजा मारकर उसके पूरे शरीर को दो पटकनी ज़मीन पर दे झटका। बस! प्रियंका की हड्डियां चटक गईं और उसके लिए सांस लेना भी दूभर हो गया। रिया मैडम ने उसके अधमरे शरीर को उड़कर उस ट्यूबलाइट पर लटका दिया जो यू आकार के होल्डर पर फिट था।
प्रियंका के लटकते ही सारा जंगल फिर से सो गया। मैं भी अपने आप में वापस लौटा तो याद आया कि मुझे अपने बॉस के आगे हाज़िरी देनी है।
मैंने अपने धड़कते दिल को थपथपाया और उस छुट्टे साँड के केबिन में झाँकर पूछा –“मे आई कमिन सर?”
केबिन के भीतर देखा तो चेयर-वेयर छोड़कर दरवाज़े के पास ही टेबल के आगे वो साँड ज़मीन पर बैठा अपने आप को पूँछ से हाँक रहा था। उसके टेबल के ऊपर और आस–पास के टेबल ड्राअर आदि पर गोबर फैला हुआ था। पहले भी उनका केबिन इतना ही अव्यवस्थित रहता था। अक्सर फाइलें उनके केबिन में जाकर खो जाती थीं और फाइल भेजनेवाले के ऊपर उसे गुम करने का इलज़ाम आता था।
ख़ैर! तो वो मुझे देख रहे थे। सिर्फ़ देख रहे होते तो कोई बात थी, मगर उन्होंने तो देखते ही नथुने फड़काने शुरूकर दिए। और फिर उठ खड़े हुए और धीरे-धीरे अपने पिछले बाएं खुर को ज़मीन से रगड़ने लगे। उन्होंने गर्दन हल्की सी उठाई और अपना सर अपने बीचों-बीच ऐसे स्थित कर लिया कि उनके तेज़, ख़तरनाक, खूँख़्वार सींगों की सीध में मेरा सीना आता हो। ऐसा रूप तो उनका पहले भी देखा था क्योंकि इसके ठीक बाद वे मेरी वाट लगाते थे।
मैं उनको हरकत में आते देख तुरंत बग़ल हो गया और वो अपनी सींग लिए-दिए विघ्नेश सर के वर्कस्टेशन की दीवार तोड़ते हुए उनके कंम्प्यूटर पर जा गिरे। आज तक मैं उन्हें छुट्टा साँड समझता था। लेकिन आज वे एकदम जल्लीकट्टु के साँड लग रहे थे जिसे मेरी वो फाइल मिर्ची की तरह लगी थी।
लेकिन विघ्नेश सर को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया। हाँलाकि उनकी उदास आँखें देखकर कभी नहीं लगता था कि उनको कोई किसी प्रकार की उत्तेजना दिला सकता है। जब से लैला मैडम यहाँ से यह नौकरी छोड़कर गई हैं हमने उनकी आँखें उदास ही देखी हैं। लैला मैडम भी क्या थीं। एकदम घोड़े की तरह फुर्तीली।
हाँ तो मैं कह रहा था कि उनको कोई उत्तेजित नहीं कर सकता था। मगर आज उनके नथुने फड़क उठे। उन्होंने अपनी उदास आँखों से उस जल्लीकट्टु के साँड को देखा और चारों भारी-भरकम पैरों को एक-एक कर के थाप दी। उनके पैरों के नीचे के टाइल उखड़कर बाहर आ गए। गैंडा अगर इस फ्लोर पर अपना गुस्सा उतारने लगेगा तो और उम्मीद भी क्या की जा सकती है इन नाज़ुक टाइलों से।
माना की उनके नथुनों के ऊपर एक ही सींग है और बॉस के दो-दो। मगर इनकी एकलौती ही उन पर भारी पड़ने वाली है।
मैं इन दोनों की लड़ाई देखकर भयभीत हो रहा था। क्योंकि इनके सपोर्ट में तरह-तरह के जानवर इकट्ठे होने शुरु हो गए थे। कुछ तो ऐसे जानवर भी थे जो दूसरे फ्लोरों से आए थे। जिन्हें मैं जानता तक नहीं था। उस ज़िराफ को मैंने अक्सर देखा था। मगर वह किस फ्लोर से था; पता नहीं। मगर उस ज़ेब्रा को तो मैंने कभी नहीं देखा।
सब जानवरों ने चिंघाड़ना, चीखना, चिल्लाना शुरु कर दिया था। मुझे ख़याल आया कि इस कांड की जानकारी बिग बॉस को देनी ही चाहिए। वही इस जंगल-युद्ध को रोक सकते हैं।
मैं जान लगा कर बिग बॉस के केबिन की ओर भागा। दरवाज़ा खोलकर उन्हें सूचित करने ही वाला था कि देखा वे कंम्प्यूटर के एलसीडी स्क्रीन पर बैलेंस बनाकर बैठे हुए अपनी देह खुजला रहे हैं और उनकी लंबी पूँछ कम्प्यूटर से होते हुए टेबल के नीचे तक लटक रही थी।
मैंने हाँफते हुए कहा –“सर ….वो …सर….बाहर झगड़ा हो रहा है। सब लोग आपस में लड़ रहे हैं।”
बिग बॉस ने मुझे ध्यान से सुना और फिर दाँते निपोरकर खी-खी करने लगे।
“सॉरी सर…..मैं कुछ समझा नहीं सर।”
बॉस ने एलसीडी से एक छ्लाँग खिड़की के पास रखे मैग्ज़ीन रैक पर लगाई और एलसीडी गिर के टूट गया। उधर मैग्ज़ीन रैक को बस छू भरके उन्होंने पर्दे लटकाने के डंडे पकड़े और झूल गए। दो बार झूलते हुए उन्होंने पीछे मुड़कर मुझे देखा और तीसरी बार में बाहर हो लिए।
हे भगवान! यह तो सटक लिए। अब मैं क्या करूँ?। बचते-बचाते मैं अपनी सीट तक पहुँचा। मगर यह लड़ाई जहाँ हो रही थी वहाँ से धीरे-धीरे मेरी ओर खिसकने लगी। मेरा दिल ज़ोरों से उछल रहा था। अगर मैं इस लपेटे में आ गया तो पक्का मारा जाऊँगा।
जब लड़ते हुए वो जानवर मेरे काफ़ी क़रीब आ गए तो मैंने डर के मारे कंप्यूटर टेबल के नीचे अपने को छिपा लिया। वहाँ छिपते ही मैं एक चूहे में तब्दील हो गया। मैंने देखा टेबल के नीचे एक बड़ा सा छेद था जिसमें से कम्प्यूटर से संबंधित ढेर सारी तारें गुज़र रही थीं। मैंने वहां से दूसरे वर्कस्टेशन की राह ली। फिर तीसरे और फिर चौथे।
यूँ करते-करते मैं लिफ्ट तक पहुँच गया। मैं वहाँ बहुत कूदा मगर न तो लिफ्ट खुली न मुझे लिफ्ट के बटन तक पहुँचने का कोई उपाय ही मिला। फिर मुझे ध्यान आया कि इस लिफ्ट की दूसरी ओर एक फायर एक्ज़िट भी है। मैं उस ओर लपका। सीढ़ियों से गिरता-पड़ता नीचे पहुँचा और…
….और क्या; किस्सा ख़तम।
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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com