कविता

गरीबी

कविता की पृष्ठभूमि

एक गरीब एक अमीर की दहलीज पर आस लिये अपने बीमार बेटे के इलाज के लिए पैसे मांगने बैठा है
और अमीर अपनी बर्थ-डे पार्टी में मशगूल है

मैं बैठा रहा दहलीज पर
आस की गठरी लिये
वो जश्न में डूबे रहे
मय के जाम पिये
मेरी मर्यादा ने मुझको
लांघने ना दिया द्वार
मेरी चीख पुकार सुन ले कोई
किये जतन हजार
मैं चोर नहीं एक गरीब हूँ
हाँ इस जमाने में बदनसीब हूँ
मालिक एक टुकड़ा
जश्न का उधार दे
मेरे बच्चे को मौत
की सीढ़ियों से उतार दे
ये भूखा कई रोज से
दम तोड़ देगा
माँ इसकी कोसेगी मुझे
अगर ये हमें अकेला छोड़ देगा गुलाम रहूँ तेरा ताउम्र
बस कुछ पैसे झोली में डाल दे
मिन्नत मांग रहा है लाचार
अब कुछ सिक्के खेल समझ
उछाल दे
एक आखिरी साँस
सब के कानों से होकर गई
नशे में चूर अमीर ने
आस में बस ठोकर दी
बदहवास लौटा गरीब
मांस के लोथडे के साथ
प्राण त्याग दिए ममता ने भी
रखकर बेटे के सिर पर हाथ
पैसे की किल्लत में गरीब का
संसार मिट गया
बेटा भी आखिरी वक्त पर
धरती कुरेद “मजबूरी “लिख गया
आज वो रहता है पागल-सा पुल के नजदीक
फटे कपड़े, दुर्गंध से सराबोर
लोग दे जाते हैं भीख
लेकिन हर रोज वो
अपने आपको मौत के सामने
परोसता है
देखता है जब भी आँखें मिला
बस पैसे को कोसता है

परवीन माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733