दोहे : प्यार और अनुराग
ऐसा होना चाहिए, जल से भरा तड़ाग।
जिसके सुमनों में रहे, प्यार और अनुराग।।
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नहीं चाहिए चमन में, माली अब गद्दार।
उपवन के सारे सुमन, होवें पानीदार।।
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कट्टरपन्थी छोड़ कर, होवें सभी उदार।
गरदन पर मासूम की, अब न चले हथियार।।
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भाषा-भूषा-पन्थ हों, चाहे भले अनेक।
रहना है हर हाल में, हमको बनकर नेक।।
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जग के दाता ने दिया, हमको मानव रूप।
रहें हमारे आचरण, मानव के अनुरूप।।
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’