संस्मरण

मेरी कहानी 151

अब पैंशन मिल गई थी और बस ड्राइविंग हमेशा के लिए बन्द हो गई थी। अब ना तो मुझे घुटने की परवाह थी और ना ही हर्नियां की क्योंकि मुझे पता था कि यह मामूली ऑपरेशन ही था। इतने ऑपरेशन होने के बाद मेरे लिए यह सब साधाहरण बात हो गई थी। रही बात घुटने की, तो मैंने जितना हो सकता था, एक्सरसाइज़ करनी शुरू कर दी, जैसे कुर्सी पर बैठ के घुटने को हिलाना और कुछ खड़े हो कर धीरे धीरे नीचे की और आना और आधा घंटा सड़क पर पैदल चलना। मैं और कुलवंत दोनों बाहर चले जाते और सड़कों के चक्कर लगाते रहते। जब कभी घुटना और हर्नियां दर्द करने लगते हम घरों के आगे बनी छोटी सी दीवार पर बैठ जाते। कुछ देर आराम करके फिर चलने लगते। दो महीने बाद मेरा हर्नियां का ऑपरेशन हो गया और ऑपरेशन करके उसी दिन घर भेज दिया। अब तो बस जखम सूखने तक ही इंतज़ार था, दो हफ्ते बाद मैं और कुलवंत फिर पार्क में जाने लगे। अब चलने में हर्नियां की कोई ख़ास तकलीफ नहीं थी और यहां यह भी लिखूंगा कि इस के बाद मुझे इस की कोई तकलीफ नहीं हुई, यह सब काम की वजह से ही था। हकूमत की तरफ से मुझे incapacity benefit भी मिलने लग पढ़ा था लेकिन वोह कभी कभी मुझे चैक अप करने के लिए बुलाया करते थे, दो तीन दफा उन्होंने मुझे बुलाया। उन का डाक्टर मुझे चैक अप करता था। एक दफा एक अँगरेज़ डाक्टर था, उस ने मेरी सारी रिपोर्ट देखि और कुछ सवाल पूछे, जिन का जवाब मैंने दे दिया। मेरा मैडीकल चैक अप करने के बाद वोह मुझ से पूछने लगा कि मैं बसों पे कब से काम कर रहा हूँ तो जब मैंने बताया कि मैं 1965 से काम कर रहा हूँ तो वोह मेरे साथ बातें करने लगा कि क्या इनोक पावल के बारे में मैं कुछ जानता हूँ, तो मैंने हंस कर जवाब दिया कि वोह तो एक दफा मेरी बस पे भी चढ़ के टाऊन को आया था और उस ने मेरे साथ बातें भी की थी और यह भी बताया कि मेरे साथ जो बातें उस ने कीं, उस से लगता ही नहीं था कि वह इंडियन लोगों को नफरत करता होगा । मैंने उस की 1968 की rivers of blood स्पीच के बारे में बताया और यह भी बताया कि हम सबी immigrants उस वक्त डरे हुए थे। डाक्टर कहने लगा, कि इनोक पावल बिदेशियों को चाहता नहीं था लेकिन वोह बिलकुल गलत था क्योंकि बिदेशियों ने इस देश के लिए बहुत कुछ किया है, इकोनॉमी को बिल्ड अप किया है और सारी नैशनल हैल्थ सर्विस उन पर निर्भर है। मैंने जवाब दिया कि एक बात पर वोह सही था, क्योंकि हकूमत को तो पता था कि हम इंगलैंड की अर्थवयवस्था में कितना योगदान दे रहे हैं लेकिन बाहर से आने वालों की कोई लिमिट होनी चाहिए ताकि लोगों के दिलों में नफरत की भावना पैदा ना हो।
ऐसा डाक्टर मैंने पहली दफा देखा था जिस ने इतनी बातें मेरे साथ कीं, वरना डाक्टर मतलब के बगैर कोई बात करते नहीं। इस डाक्टर का मुझे नाम तो याद नहीं लेकिन उस का मुस्कराता चेहरा अभी तक मेरी आँखों के सामने है। इस डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में किया लिखा होगा, मुझे नहीं पता लेकिन इस के बाद मुझे फिर कभी किसी ने नहीं बुलाया। पैंशन मिलने के बाद एक तो मेरी कोशिश अपनी सिहत को फिर से पटरी पर लाने की थी और दूसरे कुलवंत की सिहत की ओर धियान देना था क्योंकि जब से उस की बैक पेन शुरू हुई थी, धीरे धीरे इस के साथ अन्य समस्याएँ पैदा हो गई थीं, उस को मस्कुलर पेन्ज़ भी शुरू हो गई थीं और उस के लिए पता नहीं हम कहाँ कहाँ भागे फिरते रहे लेकिन हम दोनों ने मिल कर हर मुसीबत का मुकाबला किया। डाकटरों और स्पेशलिस्टों ने fibromyalgia डायग्नोज किया था जिस का कोई इलाज नहीं। हमारी डाक्टर मिसज रिखी ने हमें बताया था कि उस की सगी बहन को यही रोग था और वह वील चेअर में पढ़ गई थी और हमें भी संभल जाने को बोला था। उस दिन से ही मैंने लाएब्रेरी में इस रोग के लिए किताबें ढूंढनी शुरू कर दी थी और इन को पढ़ के मैं एक ही नतीजे पर पहुंचा था कि अच्छी खुराक और रोज़ाना एक्सरसाइज और कम्सेकम एक मील रोज़ तेज चलना ही इस का इलाज है, रोग तो जाएगा नहीं लेकिन ज़िंदगी अच्छी चलती रहेगी।
हम भारती लोगों की फितरत में है कि कोई ना कोई इलाज बता देगा कि तुम यह इलाज करके देखो, वह करके देखो और हम भी जो कोई बताता, वह करते। हम ने एक कुआलिफाइड होमिओपैथ से साल भर इलाज कराया और आखिर उस ने खुद ही हाथ खड़े कर दिए और हमें जवाब दे दिया। फिर हम ने आयुर्वेद से देसी इलाज कराया, एक पैसा भी फरक नहीं पढ़ा। अकुप्रैषर, ाकुपंक्चर, ऑस्टिओपैथ, चाइनीज़ देसी इलाज, क्या क्या हम ने नहीं किया लेकिन सब फेल और आखर में वोही बात आ गई कि अच्छी खुराक और एक्सरसाइज ही असली इलाज है और इसी बात को ले कर कुलवंत नॉर्मल ज़िंदगी जी रही है और हमारी पुरानी डाक्टर जब भी कभी कुलवंत को देखती है तो खुश हो जाती है और हैरान भी हो जाती है कि वह अभी तक ठीक जा रही है । अब तो कुलवंत ने बहुत सालों से एक लेडीज़ ग्रुप को जाएंन किया हुआ है और हफ्ते में तीन दफा पार्क में तेज चलने के लिए जाती है। इस के इलावा एक सखी रशपाल के साथ एक लेडीज़ ग्रुप चला रही है जिस का नाम है हमजोली ग्रुप ,काउंसल ने उन्हें एक छोटा सा हाल दिया हुआ है, जिस में तकरीबन पचास औरतें जो रिटायर्ड हो चुकी हैं और कुछ बीमार रहती हैं, उन को योगा कराने के लिए एक योगा टीचर का प्रबंध किया हुआ है। रशपाल बहुत अच्छे सुभाव की है और सभी औरतें इन को बहुत मान देती हैं। कुलवंत और रशपाल लेडीज़ के लिए बहुत से फंक्शन का प्रबंध भी करती हैं, जैसे दीवाली, दुसैरा, लोहड़ी, आज़ादी दिवस, क्रिसमस और कभी कभी टाऊन के मेयर को बुला कर उस की इज़त में कोई छोटा मोटा फंक्शन कर लेती हैं। क्रिसमस के वक्त लेडीज़ को किसी होटल में डिनर पे ले जाती हैं। इस के इलावा गर्मिओं के दिनों में सब को दूर किसी सीसाइड पर ले जाती हैं, कभी लंडन की सैर पर ले जाती हैं। जितना कुलवंत और रशपाल और उन की सखिओं ने इंगलैंड घूम कर देखा है, इतना मैंने आज तक नहीं देखा और अब 27 जुलाई को कल फिर वह सब ग्रेटयारमथ सीसाइड को गई थीं और मैंने यह आज तक नहीं देखा। हर साल हमारे टाऊन का मेयर सब लेडीज़ को टाऊन हाल में बुला कर सर्टीफिकेट देता है और सब को चाय पिलाता है। यही नहीं, कुलवंत बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती रही और उन को स्कूल से ले कर भी आती है और यह भी कार को छोड़ पैदल ही जाती थी। यहां मैं अब ही यह बात भी लिख दूँ कि 22 जुलाई 2016 कुलवंत के लिए आख़री दिन था , बच्चों को स्कूल छोड़ने और ले आने का क्योंकि बड़ा पोता तो कब का हायर सैकंडरी स्कूल जाता था और छोटे का भी इस स्कूल में 22 जुलाई को आख़री दिन था और उस दिन गर्मिओं की छुटिआं हो गईं और छोटा पोता भी छुटिओं के बाद हायर सैकंडरी में जाने लगेगा। हम हँसते हैं कि अब कुलवंत को भी स्कूल जाने आने की छुटिआं हमेशा के लिए हो गईं। 24 जुलाई रवीवार को संदीप जसविंदर और दोनों पोते घर आये और कुलवंत को एक सुन्दर प्लांट और थैंक यू कार्ड दिया और सभी ने हम दोनों को हग्ग किया, कि कितने वर्ष कुलवंत ने बच्चों को स्कूल छोड़ा, जब कि सिहत भी अच्छी नहीं थी। कार्ड पर सब ने हमारा धन्यवाद किया था और दोनों पोतों ने अपनी तरफ से हम दोनों का धन्यवाद किया हुआ था, कुलवंत और मैं कुछ भावुक हो कर रोने लगे और संदीप कुलवंत के गले लग गया। यह ख़ुशी के आंसूं ही थे। कुछ देर बाद वह चले गए और हम दोनों बातें करने लगे। फिर उसी बात पे आ जाता हूँ कि ऐक्टिव रहना कुलवंत की सिहत के लिए वरदान साबत हुआ। इस साल क्रिसमस को वह 70 की हो जायेगी। इस उम्र में तो यों ही बहुत लोगों की सिहत में फरक आ जाता है लेकिन कुलवंत की इतनी ऐक्टिविटी ने उस को बहुत फायदा पुहंचाया है । कुलवंत मेरी पत्नी है, सिर्फ इस लिए ही यह बातें मैं नहीं लिख रहा, मैं तो यह सोच रहा हूँ कि डाक्टर और सभी लोग एक्सरसाइज और अच्छा खान पान का मशवरा देते हैं और इस का प्रूफ मेरी पत्नी कुलवंत है क्योंकि जो हमारी डाक्टर मिसज रिखी ने बताया था कि वह इस रोग के कारण वील चेअर में पढ़ जायेगी और मिसज रिखी की अपनी सगी बहन भी इसी रोग से पीड़त थी और वील चेअर में पढ़ी हुई थी। कुलवंत ने अपनी हिमत से इस रोग का मुकाबला किया और अभी तक ठीक जा रही है, मैं फखर से कहूंगा क़ि SHE IS JUST GREAT, उस की ग्रेटनेस इस बात से भी है कि उस की पढ़ाई मिडल तक ही है लेकिन उस की सोच बिलकुल मॉडर्न है। हमारे लोकल रेडिओ पर अक्सर वह भाग लेती ही रहती है, किसी की कहानी पर अपने विचार देती है। रेडिओ ऐक्सैल, रेडिओ गुलशन और कांशी रेडिओ पर भी कभी कभी अपने विचार पेश करती हैं। रेडिओ ऐक्सैल पर हर शुकरवार को खाने पकाने का प्रोग्राम होता है, वह उस में ख़ास कर भाग लेती है और अपनी कोई रैस्पी बताती है और एक दफा उस ने प्राइज़ भी जीता था जो था तो एक ब्लैंडर ही लेकिन इस से उस को बहुत हौसला मिला है और रेडिओ ऐक्सैल के सरोते उस को इज़त देते हैं।
कुलवंत की इन बातों को छोड़ कर मैं फिर उसी बात पर आ जाता हूँ कि जब मुझे कम्पनी पैंशन मिल गई तो अब मेरे लिए कोई काम नहीं था। अपने आप को बिज़ी रखने के लिए मैंने लाएब्रेरी का रुख किया। लाएब्रेरी में तो कभी कभी मैं पहले भी जाया करता था लेकिन अब वक्त बहुत था, लाएब्रेरी से आने की कोई जल्दी नहीं थी। कई कई घंटे लाएब्रेरी में दोस्तों के साथ बैठा पड़ता रहता और कभी किसी बात पे गुफ्तगू होती रहती। सारे अखबार मैगज़ीन बगैरा पढ़ते और कभी कभी आते वक्त पुराने रिकार्ड भी ले आते। दिन बीतने लगे और जिस घड़ी का मुदत से इंतज़ार था, वह घड़ी भी आ गई, 14 जुलाई 2001 को जसविंदर ने बेटे को जनम दिया। उस दिन जो ख़ुशी हुई, उस ने सब दुःख भुला दिए। जसविंदर के ममी डैडी का सब से पहले टैलिफूंन आया और एक दुसरे को हम ने वधाई दी। शाम को फूल ले कर हम नए महमान को देखने नीऊ क्रौस हसपताल जा पहुंचे। पहले जसविंदर के ममी डैडी ने एक सुन्दर बुक्के दिया और जसविंदर के साथ बातें करने लगे। फिर कुलवंत ने छोटा सा सोने का कड़ा नए महमान की छोटी सी कलाई पर डाल दिया। फिर उठा कर उस से बातें करने लगी, मैं और संदीप भी खड़े थे। सभी हंस हंस कर बातें कर रहे थे। कुछ देर बाद कुलवंत ने मुझे पकड़ा दिया और बोली,” लो बाबा ! अपने पोते को पकड़ो “, मैंने हाथों से उठाया तो एक अजीब सी ख़ुशी महसूस हुई। दादा बनने का भी अजीब सुख होता है। पोता बिलकुल बेटे पर ही गया था। बातें करते करते हम बाहर आ कर वेटिंग रूम में आ कर बैठ गए क्योंकि रीटा कमलजीत और जसविंदर की अन्य बैहनें और भाई भी मिलने के लिए आये हुए थे । चार लोगों से ज़्यादा वार्ड में आने की इजाजत नहीं थी। जब सभी देख मिल आये तो आखर में संदीप दुबारा गया। हम सभी वेटिंग रूम में बैठे बातें करते रहे। विज़िटिंग टाइम एक घंटा ही था और पता ही नहीं चला कब बैल बज गई और सभी हसपताल से बाहर आने लगे।
बाहर आ कर मैंने जसविंदर के डैडी हरजिंदर सिंह और उस की ममी को हमारे घर आने को बोला, जो उन्होंने सवीकार कर लिया और हमारे साथ हमारे घर आ गए। रीटा और कमलजीत चले गए क्योंकि उन्होंने एक तो बर्मिंघम जाना था, दूसरे उन दोनों ने सुबह काम पर जाना था। इंगलैंड की सोशल ईवनिंग पब में ही होती है। मैं संदीप और जसविंदर के डैडी और भाई प्रदीप लोकल पब्ब summer house में चले गए । यह पब्ब ज़्यादा बड़ा नहीं है लेकिन इस में घर जैसा वातावरण होता है। जब स्मोक रूम में गए तो वहां कुछ अन्य दोस्त बैठे थे। अपने लिए हम ने ड्रिंक लिए और दोस्तों के आगे भी, जो वह पी रहे थे, ड्रिंक उन के टेबलों पर रख दिए। वह नाह नाह कर रहे थे लेकिन जब मैंने बताया कि हमारे घर में आज पोते ने जनम लिया है, तो सभी ने हमें वधाई दी। गियारह वजे पब्ब बंद हो गया और दो मिंट में हम घर आ गए क्योंकि पब्ब घर से चालीस पचास गज़ की दूरी पर ही है और इस पब्ब को हम अपना लोकल कहते हैं। घर आये तो खाना तैयार था। क्या क्या बातें हुईं, याद नहीं लेकिन कुछ देर बाद हरजिंदर, उस की पत्नी और बेटा प्रदीप अपने घर को रवाना हो गए।
दो दिन जसविंदर हसपताल रही और तीसरे दिन हमें बता दिया गया कि अब जसविंदर घर जा सकती थी। मैं कुलवंत और संदीप तीनों हसपताल जा पहुंचे। मैं और कुलवंत वेटिंग रूम में बैठ कर इंतज़ार करने लगे और संदीप मैटरनिटी वार्ड में चले गया। फॉर्मैलिटी पूरी करने में तकरीबन एक घंटा लग गया। फिर जसविंदर संदीप और एक नर्स जो पोते को हाथों में लिए आ रहे थे, वेटिंग रूम में आ गए और नर्स ने मुझे गाड़ी लाने को बोल दिया। मैं उठ कर कार पार्क में गया और गाड़ी ला कर दरवाज़े के आगे खड़ी कर दी, यहां कुछ देर के लिए गाड़ी खड़ी की जा सकती थी। गाड़ी में हम बैठ गए और नर्स ने पोते को जसविंदर की गोद में रख दिया, हम ने नर्स का धन्यवाद किया और घर की तरफ रवाना हो गए। जब चले, तो कुलवंत ने कहा कि पहले गाड़ी गुर्दुआरे की ओर ले चलो ताकि गृह प्रवेश करने से पहले बाबा जी का आशीर्वाद ले लें। गुर्दुआरे में पन्द्रां बीस मिंट रहे, अरदास हुई और परशाद ले कर घर को चल पढ़े। जब दरवाज़े पर मैंने गाड़ी खड़ी की तो कुलवंत कहने लगी,” ज़रा ठहर जाओ, मैं तेल ले कर आती हूँ “, तेल ले आ कर उस ने दलीजों के दोनों तरफ कुछ तेल डाला और वाहेगुरु बोल कर हमें भीतर आने को कहा। इस बात को पंद्रह वर्ष हो गए हैं और आज जब मैंने यह सब लिखा है तो मेरी आँखों के सामने वह दिन आ गए, सोचता हूँ उस दिन हम कितने पर्सन थे। चलता. . . . . . . . . . .

9 thoughts on “मेरी कहानी 151

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। आज की क़िस्त में आपने अपने जीवन के अनेक खट्टे मीठे अनुभवों से परिचित कराया है। क़िस्त अच्छी लगी। हार्दिक धन्यवाद्।

    • धन्यवाद मनमोहन भाई .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, सही रहन-सहन, खान-पान और सकारात्मकता स्वास्थ्य के लिए अनमोल नेमतें हैं. दादा-दादी को पोते के 15 साल होने की बधाई. आप लोगों की हिम्मत और ज़िंदादिली हम सबके लिए अनुकरणीय है. एक और अद्भुत एपीसोड के लिए आभार.

    • धन्यवाद लीला बहन , मेरा विचार है कि जब हम अपनी जीवन कथा बिआं करते हैं तो हम को अपना जिंदगी का तजुर्बा जरुर लिखना चाहिए .वैसे कहानी तो हर एक की अपनी अपनी होती ही है लेकिन जो जिंदगी में अच्छा या बुरा हुआ वोह जरुर लिखना चाहिए .अक्सर हम लोग अपनी अपनी बीमारी को दूसरों से छुपाते हैं लेकिन इस में छुपाने की कोई जरुरत नहीं है बल्कि हम को इस का फायेदा ही होता है क्योंकि हो सकता है किसी और का बताया नुस्खा काम आ जाए . पोते को वधाई देने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद .आज बेटे बहु की शादी को बीस साल हो गए और अभी अभी यहाँ आये थे और पोतों को साथ ले के सारे मज़े करने गए हैं .

      • लीला तिवानी

        प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. बीमारी को बताने से कभी-कभी उसका सही नुस्खा भी मिल जाता है और दूसरों को भी लाभ मिल सकता है. बहू-बेटे की शादी की बीसवीं सालगिरह की बहुत-बहुत मुबारकवाद. ऐसा खुशी का दिन सालों-साल आता रहे.

      • लीला तिवानी

        प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. बीमारी को बताने से कभी-कभी उसका सही नुस्खा भी मिल जाता है और दूसरों को भी लाभ मिल सकता है. बहू-बेटे की शादी की बीसवीं सालगिरह की बहुत-बहुत मुबारकवाद. ऐसा खुशी का दिन सालों-साल आता रहे.

        • धन्यवाद लीला बहन .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब ! भाई साहब एवं भाभी जी, आप दोनों की हिम्मत और जिन्दादिली को प्रणाम !!
    आपने सही लिखा है कि उचित खुराक और नियमित एक्सरसाइज से कोई भी व्यक्ति स्वस्थ हो सकता है और रह सकता है. मैं इसीलिए दूसरों को यही सलाह देता हूँ और खुद भी इस पर चलता हूँ.

    • विजय भाई , यह संसार बीमारीओं से भरा हुआ है, कोई खुशकिस्मत ही इस से बचा हो .मैं कोई डाक्टर तो नहीं हूँ लेकिन जितना मैंने पढ़ा है और वोह भी गियानी जी की संगत से, उस से इसी नतीजे पर पहुंचा हूँ कि सही खुराक और ऐक्सर्साइज़ से जिंदगी चलती रहेगी .बहुत बिमारीआं जनैतिक होती है, जो किसी faulty जीन की वजह से होती हैं जिन का कोई इलाज नहीं होता, बस सिर्फ अपनी हिमत से ही जिंदगी को धक्का देना पढ़ता है .

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