“जीवन की शाम”
सुन सखी…
आ गई जिंदगी की शाम
लगने लगा यूँ मानो…
शनै: शनै: उम्र हो रही तमाम
जाने कब किस लम्हे में
जीवन की परम सखी मृत्यु
बन अंधियारी निशा
सांझ से मिलने आयेगी
लगा गले वो सांझ को
अपने संग ले जायेगी
थम जायेगा मानो सब इक पल में
मिल जायेगा जीवन को पूर्ण विराम
पर नहीं… रुको… तनिक सोचो…
क्या कभी मिला है जीवन को पूर्ण विराम ?
देखना तुम,,,
आयेगा जल्द ही उज्जवल प्रभात
खो जायेगी,,,
जिसकी रोशनी में ये काली रात
नव-सृजन, नव-जीवन का
फिर बिगुल बजेगा
नूतन ऊर्जा से ये नव-जीवन खिलेगा
सृष्टि का नित यूँ ही जीवन चक्र चलेगा
मिलेगा जीवन को फिर से इक नया आयाम
अथक चलते जाना ही तो है जीवन का काम
जिंदगी यूँ ही अनवरत चलने का ही तो है नाम
@ शशि शर्मा “खुशी”