बाल कविता

झूम-झूम बरसो हे बदरा

झूम-झूम बरसो हे बदरा,
कहां छिपे बैठे हो बदरा!
कबसे हमने आस लगाई,
झूम-झूम बरसोगे बदरा॥

धरती प्यासी, अंबर प्यासा,
नदिया प्यासी, सागर प्यासा।
बगिया प्यासी, सुमन भी प्यासे,
मुरझाया चातक भी प्यासा॥

कुछ तो है मजबूरी तुम्हारी,
हमको भी बतलाओ बदरा?
जमकर बरसो, झूमके बरसो,
छिपकर मत बैठो हे बदरा ॥

हमने प्रभु से विनती भी की,
फिर भी न माने तुम हे बदरा।
मेघ मल्हार भी गाया हमने
तनिक न पिघले तुम हे बदरा॥

कहीं-कहीं तो ऐसे बरसे,
बाढ़ का कहर ले आए बदरा।
जाने क्यों हमसे रूठे हो!
जल के भरे भंडारे बदरा॥

शायद सूरज के तेज ताप से,
डरकर घर बैठे हो बदरा।
घर के सारे ए. सी. चलाकर,
ठंडक पाते हो तुम बदरा॥

इस ठंडक से हमें रिझाने,
हर्षाने आओगे बदरा।
बरसो-बरसो-बरसो बदरा,
देर न हो जाए प्यारे बदरा॥

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “झूम-झूम बरसो हे बदरा

  • अर्जुन सिंह नेगी

    बेहद सुन्दर कविता !

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते बहिन ही। जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि। इस उक्ति के अनुसार आपने बहुत सुंदर शब्द रचना वर्षा के ऊपर की है। हार्दिक धन्यवाद्. संयोग कि बात है कि इस समय देहरादून में वर्षा हो रही है. रात्रि के शांत वातावरण में इसकी भीनी भीनी आवाज कानों में पड़कर मन को आह्रादित कर रही है। सादर नमस्ते।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, हमारे यहां सिडनी में भी प्रातःकाल के शांत वातावरण में बारिश की रिमझिम बौछार हो रही है. अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता बहुत अछि लगी लीला बहन .अब तो बादल आयेंगे ही लेकिन कहर ना बरसायें , ऐसी बेनती है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, हमारी भी यही विनती है-
      ”न सूखा हो, न बाढ़,
      मौसम हो खुशगवार.”
      अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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