झूम-झूम बरसो हे बदरा
झूम-झूम बरसो हे बदरा,
कहां छिपे बैठे हो बदरा!
कबसे हमने आस लगाई,
झूम-झूम बरसोगे बदरा॥
धरती प्यासी, अंबर प्यासा,
नदिया प्यासी, सागर प्यासा।
बगिया प्यासी, सुमन भी प्यासे,
मुरझाया चातक भी प्यासा॥
कुछ तो है मजबूरी तुम्हारी,
हमको भी बतलाओ बदरा?
जमकर बरसो, झूमके बरसो,
छिपकर मत बैठो हे बदरा ॥
हमने प्रभु से विनती भी की,
फिर भी न माने तुम हे बदरा।
मेघ मल्हार भी गाया हमने
तनिक न पिघले तुम हे बदरा॥
कहीं-कहीं तो ऐसे बरसे,
बाढ़ का कहर ले आए बदरा।
जाने क्यों हमसे रूठे हो!
जल के भरे भंडारे बदरा॥
शायद सूरज के तेज ताप से,
डरकर घर बैठे हो बदरा।
घर के सारे ए. सी. चलाकर,
ठंडक पाते हो तुम बदरा॥
इस ठंडक से हमें रिझाने,
हर्षाने आओगे बदरा।
बरसो-बरसो-बरसो बदरा,
देर न हो जाए प्यारे बदरा॥
बेहद सुन्दर कविता !
नमस्ते बहिन ही। जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि। इस उक्ति के अनुसार आपने बहुत सुंदर शब्द रचना वर्षा के ऊपर की है। हार्दिक धन्यवाद्. संयोग कि बात है कि इस समय देहरादून में वर्षा हो रही है. रात्रि के शांत वातावरण में इसकी भीनी भीनी आवाज कानों में पड़कर मन को आह्रादित कर रही है। सादर नमस्ते।
प्रिय मनमोहन भाई जी, हमारे यहां सिडनी में भी प्रातःकाल के शांत वातावरण में बारिश की रिमझिम बौछार हो रही है. अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
कविता बहुत अछि लगी लीला बहन .अब तो बादल आयेंगे ही लेकिन कहर ना बरसायें , ऐसी बेनती है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, हमारी भी यही विनती है-
”न सूखा हो, न बाढ़,
मौसम हो खुशगवार.”
अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.