कविता : क्या हुआ , क्या हो रहा है और क्या होगा
वैज्ञानिक रस में डूब कर,
आधुनिक उन्नति खूब कर,
वह प्रकृति का शासक बन बैठा ।
भौतिक सुखों की होड़ में,
वाहनों की दौड़ में,
वह पर्यावरण को दूषित कर बैठा ।
ऑक्सीजन के मारे ,
ये लोग अंधियारे ,
कैसे इससे बच सकते हैं ।
आपके सहयोग से ,
सरकार के संजोग से ,
इस समस्या को नियंत्रित कर सकते है ।
मोबाइल की क्रांति से ,
स्टाइल की भ्रान्ति से ,
हो सके तो इस पर काबू पाइए ।
संस्कारो की आवाज से,
आधुनिकता के ताज से,
सन्तुलन बना के जीते जाइए ।
कर्म की इस धरती पर,
दुनिया ये टलती पर,
बाद में पछताएगी ।
आने वाली पीढ़ी ,
आज के आलसियों को ,
दुत्कारती ही पायेगी ।
कर्म में मस्त रहना ,
निंदा से बच के रहना ,
सच्चे कर्मशील की पहचान होगी ।
सदुपयोग करके वक्त का ,
पाबन्द हो हर वक्त का ,
भविष्य में उसी हुनरमन्द की शान होगी ।
अभी चली है कलम कुछ दूर,
बन रहा धीरे से सरूर,
बहुत दूर तक जाना है ।
न तलवार के वारों से,
केवल शब्दों के हथियारों से,
विचारों को जन जन तक पहुँचाना है ।