वो दोपहर
याद है वो दोपहर
जब मै गुजरती थी उस राह से
कितने मासुम बच्चे
करते दिखते काम
धीरे से मै पहूँची उनके पास
थोडा दुलार दे थोडा प्यार
पुछ बैठी मै एक सवाल
कैसे कर लेते हो
इन कोमल हाथो से काम
क्यो नही जाते पढने स्कूल
भोजन भी मिल जाते मुफ्त
पढाई के साथ- साथ
पुरी हो जाती पेट की भूख
थोडा सहमे थोडा शरमाये
मेरे ऑखो में ऑखे डाल
दे दियें मेरे जवाब
मै तो कोई अकेला नही
जो अपने भर की बात सोचूँ
मेरे से भी छोटे छोटे
है अपने भाई बन्धु
मै कैसे भी जी खा लेता हूँ
पर उनके लिये तो कुछ
हमे ही करना है
अपना पेट तो सभी भरते है
पर हमे दूसरो का भरना है
किसकी ऐसी चाहत नही
जो पढलिख कर विद्वान बने
मेरी भी मजबूरी है
घर की सभी जिम्मेवारी
मेरे पर ही टिकी है
मॉ अकेला क्या क्या करती
उनका साथ तो देना है
पापा भी बचपन मे छोड
दे दिये मॉ को भारी बोझ|
निवेदिता चतुर्वेदी