कविता

गॉव

गॉव अब गॉव नही रहा
विरान सा लगता है यहॉ
अपनी उच्च आकांक्षाओ
से लिप्त सभी
कर रहे पलायन शहरो में
पहले जैसा न गॉव में
खुशियॉ दिखती
नही त्योहारो मे रौनक
न सखियो की टोलियॉ दिखती
नही बच्चो की किलकारीयॉ
न बुजुर्गो की सलाह होती
नही अपनो मे मस्तीयॉ
न मिलती करने को बागो की सैर
नही लेने को शुद्ध हवाएँ
बस छोटे से पार्क मे घुम
कर लेते अपने मन को खुश
आज न पहले जैसा स्वतंत्र कोई
नही रहा समय किसी को
आज बस शहरो के पिछे दिवाने हो
भागते हुये दिखते लोग
जैसे गॉव उनके लिये
शिर्फ एक ख्वाब बन चुका हो|
    निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४