दो कविताएँ
(1)
बहुत जरुरी हैं डैडी
समाज में रहने के लिए
झूठी सहानुभूतियों से बचने के लिए
एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व बनने के लिए
घर में अनैतिकता के अप्रवेश के लिए
किसी की उपेक्षा से दूर रहने के लिए
स्वयं को अधिकारयुक्त और सबल समझने के लिए
बहुत जरुरी हैं डैडी
(2)
बारबार याद आते हैं डैडी
जब कोई डाँटता है
जब कभी अपनत्व के खो जाने
का अहसास हो जाता है
जब कभी हर ज़िद को पूरा करवाने का
मन हो जाता है
जब कभी मम्मी का विषादित मुख देखकर
उनके भी कभी खो न जाने का
भय हृदय में कौंध जाता है
जब कभी किसी सफलता पर
डैडी के मुख की स्वाभिमानी खुशी
भरा चेहरा याद आ जाता है
तब बारबार याद आते हैं डैडी
हृदय सपर्शी कविताओं के लिए बधाई
धन्यवाद नेगी जी
प्रिय सखी शुभ्रता जी. डैडी पर अत्यंत भावपूर्ण कविताओं ने द्रवीभूत कर दिया. अत्यंत सार्थक कविताओं के लिए आभार.
प्रिय सखी शुभ्रता जी. डैडी पर अत्यंत भावपूर्ण कविताओं ने द्रवीभूत कर दिया. अत्यंत सार्थक कविताओं के लिए आभार.
धन्यवाद मेडम