मन
मन धूप है,
मन छाया है,
मन माया है,
मन सरमाया है.
मन मणि है,
मन रत्न है,
मन प्रयास है,
मन प्रयत्न है.
मन अटकाता है,
मन भटकाता है,
मन संतोषी बनाता है,
मन लटकाता है.
मन संकीर्ण तो सुख भी छोटा,
मन विराट तो सुख भी बड़ा,
मन सोया तो मानव भी सोया,
मन उठ खड़ा हुआ तो मानव आगे बढ़ा.
मन के व्यवहारों का बहुत अच्छा चित्रण किया है। दर्शन कहते हैं कि “मन एवं मनुष्यानां कारणं बन्धमोक्षयो” अर्थात मनुष्य का मन ही जीवात्मा के बंधन (दुःख) और मोक्ष (सुख व आनंद) का कारण हैं। देश के प्रसिद्ध योगी स्वामी सत्यपति जी कहते हैं कि मन तो जड़ प्रकृति से बना हुआ है और आत्मा का परिचर वा गुलाम है परंतु जिसका आत्मा कमजोर होता है उसे उसका मन नाना प्रकाश के नाच कराता है। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. ज्ञानवर्द्धक और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
मन का बड़ा ही सुंदर चित्रण बहुत प्यारा पद्य
प्रिय सखी शुभ्रता जी. अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
क्षणिका बहुत अछि लगी . मन के कई रूप समझ आये .
प्रिय गुरमैल भाई जी, अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
मन की सम्पूर्ण व्याख्या के लिए बधाई1 बहुत सुन्दर रचना
प्रिय अर्जुन भाई जी, अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.