क्षणिका

मन

मन धूप है,
मन छाया है,
मन माया है,
मन सरमाया है.
मन मणि है,
मन रत्न है,
मन प्रयास है,
मन प्रयत्न है.
मन अटकाता है,
मन भटकाता है,
मन संतोषी बनाता है,
मन लटकाता है.
मन संकीर्ण तो सुख भी छोटा,
मन विराट तो सुख भी बड़ा,
मन सोया तो मानव भी सोया,
मन उठ खड़ा हुआ तो मानव आगे बढ़ा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

8 thoughts on “मन

  • मनमोहन कुमार आर्य

    मन के व्यवहारों का बहुत अच्छा चित्रण किया है। दर्शन कहते हैं कि “मन एवं मनुष्यानां कारणं बन्धमोक्षयो” अर्थात मनुष्य का मन ही जीवात्मा के बंधन (दुःख) और मोक्ष (सुख व आनंद) का कारण हैं। देश के प्रसिद्ध योगी स्वामी सत्यपति जी कहते हैं कि मन तो जड़ प्रकृति से बना हुआ है और आत्मा का परिचर वा गुलाम है परंतु जिसका आत्मा कमजोर होता है उसे उसका मन नाना प्रकाश के नाच कराता है। सादर।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. ज्ञानवर्द्धक और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • डॉ शुभ्रता मिश्रा

    मन का बड़ा ही सुंदर चित्रण बहुत प्यारा पद्य

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी शुभ्रता जी. अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    क्षणिका बहुत अछि लगी . मन के कई रूप समझ आये .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • अर्जुन सिंह नेगी

    मन की सम्पूर्ण व्याख्या के लिए बधाई1 बहुत सुन्दर रचना

    • लीला तिवानी

      प्रिय अर्जुन भाई जी, अति सुंदर, प्रोत्साहक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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