आइए संस्कृत और वैदिक मैथ्स सीखें
संस्कृत और वैदिक मैथ्स सीखने का काम संभव होगा ओपन लर्निंग और ऑनलाइन कोर्स के ज़रिए से. आम तौर पर हम संस्कृत के सामान्य-से-सामान्य शब्द के अर्थ पर बगलें झांकने लग जाते हैं. वैदिक मैथ्स का हमें पता तो है, क्योंकि हम बार-बार पढ़ते-सुनते हैं, कि ज़ीरो और दशमलव का आविष्कार भारत में हुआ, पर कब और कैसे? इस पर चुप्पी साध जाते हैं. दरअसल हमारा वैदिक साहित्य इतना समृद्ध है, कि उसमें हर विषय के बारे में गहन अध्ययन की उपलब्धि होती है.
अब ओपन लर्निंग और ऑनलाइन कोर्स के जरिए संस्कृत और वैदिक मैथ्स को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की तैयारी की जा रही है. शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे संघ से जुड़े संगठनों ने एचआरडी मिनिस्ट्री को इसका सुझाव दिया है. जिसके बाद मिनिस्ट्री के अधिकारी रोडमैप तैयार कर रहे हैं, कि किस तरह इस पर काम किया जाए. सूत्रों के मुताबिक इस पर विचार किया जा रहा है, कि ऑनलाइन कोर्स ऑफर करने में किस तरह किसी यूनिवर्सिटी या इंस्टिट्यूट से सर्टिफिकेट दिया जा सकता है. मिनिस्ट्री के एक अधिकारी के मुताबिक इसके लिए गाइडलाइन बनानी होगी. संस्कृत के साथ ही वैदिक गणित, योग और पुरातन काल के ज्ञान के बारे में भी ओपन लर्निंग के जरिए पढ़ाने के सुझाव पर विचार किया जा रहा है. यह भी सोचा जा रहा है, कि ऑनलाइन कोर्स की सीमा फिक्स ना हो. इसकी पहुंच दुनिया भर तक की जाए और भारत शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व करे. इस तरह एक बार फिर से भारत जगद्गुरु की भूमिका निभा सकता है. गुजरात की बाबा साहेब आंबेडकर यूनिवर्सिटी कई सारे अच्छे कोर्स ऑफर करती है, इसका दायरा बढ़ाना चाहिए और जो भी वो ऑनलाइन कोर्स करना चाहे उसे सर्टिफिकेट देना का इंतजाम होना चाहिए.
सुंदर व रोचक जानकारी के लिए बधाई आदरणीय लीला तिवानी जी .
संस्कृत और वैदिक गणित का प्रचार होना प्रशंसनीय है। वैदिक अध्यात्म को तो हमने ही त्याग दिया है, अतः इसका राष्ट्रिय स्तर पर प्रचार असंभव है, इस सुंदर जानकारी के लिए धन्यवाद्।
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
लीला बहन , मुझे तो इस बात से ताउज़ब हो रहा है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमारी पुरानी भाषा संस्कृत को इतना महतब क्यों नहीं दिया गिया .अब तक तो यह संस्कृत भाषा का परसार बहुत हो जाना चाहिए था .आज तक मैं यह ही सुनता आया हूँ किः अंग्रेजों ने भारत से ही सीख कर या चुरा कर इतनी उन्ती कर ली है लेकिन हम खुद इस का फायेदा क्यों नहीं उठा सके . आप के लेख से ही पता चला किः अब इस ओर कदम उठाये जा रहे हैं, सुन कर बहुत ख़ुशी हुई .
प्रिय गुरमैल भाई जी, विवादों से फुरसत मिले, तभी तो संस्कृत और संस्कृति के बारे में सोचा जाए. चलिए जब जागे तभी सवेरा. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.