आज़ादी 70,याद करो कुर्बानी
सब अपने*मन की बात* करें,मैं अपनी बात बताता हूँ,
कल रात दिखा एक स्वप्न मुझे,मैं तुमको आज सुनाता हूँ,
एक सत्तर-साला वृद्धा नारी,रस्ते में थी चुपचाप पड़ी,
उसकी गहरी काली आँखों से,
झरती थी अविरल अश्रु लड़ी,
पूछा मैंने की कौन हो तुम,
वो लगी छिपाने मुँह अपना,
*माता* सब उसको कहते थे,पर कोई न था ,उसका अपना,
कहती थी उसके सब बेटे,बस आपस में ही लड़ते हैं,
अपनी इस बूढ़ी मां की वो,न फिक्र ज़रा भी करते हैं,
एक कहता है मै *हिन्दू* हूं,एक बतलाए मैं *मुसलमान*,
घर बाँट लिए सबने अपने,
भूले की किसकी हैं संतान,
*बापू* तो चले गए बेटा,अब कैसे मेरा गुज़ारा हो,
जिसके बेटे ही बँट जाए,अब उसका कौन सहारा हो,
ये आपस में ही लड़ते हैं,
और *शत्रु* घात लगाता है,
इनको परवाह नहीं और वो,
मेरे शीश को हाथ लगाता है,
यूँ जाति -धर्म के नाम पे ये,माँ को पीड़ा पहुंचाते हैं,
झगड़ों से अपने दुनिया में,मेरा ही शीश झुकाते हैं,
मेरी अपनी ही संताने,भूली है सारे संस्कार,
देखो अपनी ही बहनों को,करते हैं कैसे शर्मसार,
गर लड़ना ही उद्देश्य है तो,मारो तुम बुरे विचारों को,
मिलकर दुनिया से खत्म करो,
मानवता के हत्यारों को,
ना फिक्र किसी को हो मेरी,मैं जीती हूं या मरती हूं,
पर मैं तो *माँ* हूं,इसीलिए मैं प्रेम सभी से करती हूं,
बातें सुनकर उस दुखिया माँ की,
मैं शर्म से पानी-पानी हूं,
कैसे मैं इज़्ज़त से बोलूं,मैं आज का हिन्दुस्तानी हूं,
दोनों हाथों को जोड़ के मैं,
माँ से बस इतना कह पाया,
हर भूल मुझे स्वीकार मगर,बस बना रहे तेरा साया,
शिक्षक होने के नाते मैं,अब अपना फर्ज़ निभाता हूं,
बगिया में तेरी*प्रेम*के अब,मैं नन्हें*फूल* खिलाता हूं,
भर जाऐं तेरे घाव सभी,मैं मरहम तुझे लगाता हूं,
सब अपने* मन की बात* करें,मैं अपनी बात बताता हूं।।
#Asma subhani#
प्रिय असमा बहनजी ! देशभक्ति से ओतप्रोत रचना में हालिया माहौल का आपने बखूबी वर्णन किया है । इसके लिए आपको बधाई ! वाकई कुछ मुट्ठी भर खुदगर्जों की हरकतों की वजह से पुरे देश को शर्मशार होना पड़ता है ।मजहब जिसका चाहे जो हो खुद को भारत माता की संतान मान भाईचारे का माहौल बढ़ाये तो हमारी भारत माता को सुखी अर्थात सुजलाम सफलाम होने से कोई नहीं रोक सकता । एक बहुत ही बढ़िया रचना के लिए आपका धन्यवाद ।