कविता

“रिश्ते”

अजीब सा बंधन है ये रिश्ते
एक नाजुक सी डोर से
जुड़े हुए बड़े-बड़े रिश्ते
बहुत सरलता से जुड़ जाते,
बमुश्किल निभाएं जाते रिश्ते
अरमानों का गला घोंटकर
आगे बढना पड़ता है
सब जानकर भी कभी-कभी
अनजान बनना पड़ता है
इन रिश्तों को निभाने के लिए
क्या कुछ नहीं करना पड़ता है
बहुत कुछ देखकर भी
अनदेखा करना पड़ता है
कहीं कोई आंधी आकर
खत्म न कर दे इन रिश्तों को
सहिष्णुता की इस दिल में
दीवार बनानी पड़ती है
न चाहते हुए भी चुप रहकर
निभाए जाते है ये रिश्ते
छोटी सी भूल से टूट जाते है रिश्ते
अजीब सा बंधन है ये रिश्ते |

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- [email protected]

4 thoughts on ““रिश्ते”

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    नीतू बेटा , इतनी छोटी उम्र में आप बजुर्गों जैसा तजुर्बा रखती हो , तुमारी सोच को सलाम . इस में एक ही बात कह सकता हूँ किः पुराने ज़माने में लोग ज़िआदा तर अनपढ़ जरुर थे लेकिन उस समय लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी होती थी किः लोग एक दुसरे पर निर्भर थे और रिश्ते निभाने में अपनी जान तक कुर्बान कर देते थे लेकिन आज लोग पढ़ लिख कर बहुत पैसे कमा रहे हैं और आसानी से कह देते हैं किः मैं किसी की परवाह नहीं करता .ऐसा नहीं है किः उस ज़माने में लोगों में गिले शिकवे नहीं थे लेकिन कोई शादी होती थी तो गुस्से हुए रिश्तों को उन के घर जा कर मनाने जाते थे, यहाँ तक किः अपनी पगड़ी उतार कर भाई के क़दमों में रख देते थे किः या तो मेरी पगड़ी फैंक दो या मेरे घर में हो रही शादी में शामल हो कर इस की शान बढाओ और यह आख़री हथिआर होता था जिसे कोई ठुकरा ही नहीं सकता था और किया कहें आज लोग फेस बुक पर तो घंटों लिखते रहेंगे लेकिन भाई की बात सुनने के लिए उन के पास कोई वक्त नहीं होता . रचना की हर लाइन सोचने को मजबूर करती है .

    • नीतू शर्मा

      बिल्कुल सही कहा आदरणीय आजकल तो लोग यहीं सोचते है कि आओ तो वेलकम, नहीं तो भीड़ कम |
      प्रतिक्रिया के लिए आभार

  • राजकुमार कांदु

    प्रिय नीतूजी ! एक निहायत ही विचारपूर्ण रचना के लिए आपका ह्रदय से अभिनन्दन । वाकई रिश्ते की डोर बहुत ही कच्चे धागे से बनी होती है लेकिन इसे आपसी प्रेम विश्वास और सहनशीलता से मजबूत बनाये रखा जा सकता है । हमारे पूर्वजों को इसमें महारत हासिल थी । अब आपकी रचना पढ़कर यह अहसास हो रहा है की हमारी अगली पीढ़ी भी रिश्तों की नजाकत को समझते हुए इसके प्रति संवेदनशील है । धन्यवाद !

    • नीतू शर्मा

      बिल्कुल सही कहा आदरणीय, प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार |

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