सत्य रवि
सत्य दुबक कर बैठा मन में,
झूठ फैलता जाता है |
काले को सफेद करने में,
लगे हुए अधिवक्ता है |
बिन पैरों के झूठ आखिर
कितनी दूर चल पाता है?
थक हारकर एक न एक दिन,
तो पकड़ा ही जाता है |
लाख छुपा लो सच को चाहे,
सच कभी छुप नहीं पाता है |
छुपाकर अपनी ओट में सूरज,
जब बादल इतराता है |
अपनी किरणों का तेजपुंज,
वो सर्वत्र फैलाता है |
झूठ के घने मेघों को चीर,
सत्य रवि बन निकल आता है |
बहुत खूब !
हार्दिक आभार आदरणीय
बहुत बढ़िया रचना । सत्य की हार नहीं होती । धन्यवाद ।
हार्दिक आभार आदरणीय