कविता

सत्य रवि

सत्य दुबक कर बैठा मन में,
झूठ फैलता जाता है |
काले को सफेद करने में,
लगे हुए अधिवक्ता है |
बिन पैरों के झूठ आखिर
कितनी दूर चल पाता है?
थक हारकर एक न एक दिन,
तो पकड़ा ही जाता है |
लाख छुपा लो सच को चाहे,
सच कभी छुप नहीं पाता है |
छुपाकर अपनी ओट में सूरज,
जब बादल इतराता है |
अपनी किरणों का तेजपुंज,
वो सर्वत्र फैलाता है |
झूठ के घने मेघों को चीर,
सत्य रवि बन निकल आता है |

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- [email protected]

4 thoughts on “सत्य रवि

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • नीतू शर्मा

      हार्दिक आभार आदरणीय

  • राजकुमार कांदु

    बहुत बढ़िया रचना । सत्य की हार नहीं होती । धन्यवाद ।

    • नीतू शर्मा

      हार्दिक आभार आदरणीय

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