खिलते फूलों के गुलशन में खार….
खिलते फूलों के गुलशन में ख़ार उगाते देखे लोग।
उजले से उजले दामन पर दाग लगाते देखे लोग॥
कैसे कैसे मंज़र देखे क्या बतलाये हम तुमको।
गिरते मानव मूल्य भला कैसे समझाये हम तुमको॥
अपनो के गम मातम पर भी जश्न मनाते देखे लोग……
उजले से उजले दामन पर दाग लगाते देखे लोग……
सचाई की राहों में पग पग पर खार मिले हमको।
सत पथ चलने वाले कितने लाचार मिले हमको॥
हमने झूठ के बल पर सच का कत्ल कराते देखे लोग….
उजले से उजले दामन पर दाग लगाते देखे लोग…..
हमने गैरों को गैरों की खातिर मरते देखा है।
औरों की खातिर अपना सब अर्पण करते देखा है॥
हमने माँ के दामन के भी दाम लगाते देखे लोग….
उजले से उजले दामन पर दाग लगाते देखे लोग…..
धर्म बना व्यापार भावना बेच रहे बन व्यापारी।
ठेकेदार बने मज़हब के ढोंगी और अत्याचारी॥
मज़हब के उन्माद में मानवता बिसराते देखे लोग…..
उजले से उजले दामन पर दाग लगाते देखे लोग….
भूख गरीबी बीमारी से जर्जर मानव तन देखें।
मजबूरी मे लाचारी में बिकते हुए बदन देखे॥
नाजुक कलियाँ मसल मसल कर दिल बहलाते देखे लोग…
उजले से उजले दामन पर दाग लगाते देखे लोग…..
हैरत में हूँ परेशान हूँ मानवता को गिरता देख।
सच्चाई को घुट कर मरते और झूठ को तिरता देख॥
धर्म और ईमान बेचकर मौज उडाते देखे लोग..
उजले से उजले दामन पर दाग लगाते देखे लोग……
सतीश बंसल