भइया
मुझ से जब गलती होती थी, भइया आगे होता था ।
भरा किताबों वाला बस्ता, भइया मेरा ढोता था ।
बीते वर्ष महीने कितने, याद सभी पल आते हैं ।
पंख लगाकर बचपन वाले, सपने सब उड जाते हैं ।
जब आखों में आते आसू, अपना धीरज खोता था ।
भरा किताबों वाला बस्ता मेरा भइया ढोता था ।
सोचा करती थी बचपन में, तुमको छोड़ न पाऊंगी ।
हाथ थामकर तेरा भइया, हर मुश्किल सह जाऊंगी ।
नहीं पता था मुझको तुम ही, खुद से दूर पठाओगे ।
मुझे बिठाकर डोली में खुद ही कंधा दे आओगे ।
देकर मुझको सारी खुशियां चैन से फिर वो सोता था ।
भरा किताबों वाला बस्ता भइया मेरा ढोता था ।
जारी है ……………
— अनुपमा दीक्षित मयंक